कलेक्टर जो डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट भी होता है एवं SDM उपखण्ड मजिस्ट्रेट (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट का सहयोगी) होता है। क्योंकि कानून और व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखने की जिम्मेदारी डीएम की होती है इसलिए डीएम को कई प्रकार की कानूनी शक्तियां प्रदान की गई है। इन्हीं में से एक शक्ति है, किसी भी व्यक्ति की तलाशी के लिए वारंट जारी करना। यह वारंट पूरे भारत देश के किसी भी क्षेत्र में मान्य होता है। आइए जानते हैं किस धारा के तहत और किन परिस्थितियों में इस प्रकार का तलाशी वारंट जारी किया जा सकता है:-
सदोष परिरुद्ध क्या है जानिए:-
किसी को आपराधिक के उद्देश्य से कैद या रोककर रखना सदोष परिरुद्ध होता है। वैसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 340 एवं 341 में हमने आपको बता ही दिया है कि किसी व्यक्ति को रोककर रखना उपर्युक्त धारा के अंतर्गत अपराध होता है, लेकिन जब कोई व्यक्ति के नातेदार या संबंधित व्यक्ति को यह जानकारी है कि उसका मित्र या कोई रिश्तेदार को ऐसे स्थान पर छुपा रखा है जिसे वो अच्छी तरह से जानता है तब ऐसा कोई भी व्यक्ति SDM या कलेक्टर (जिला मजिस्ट्रेट) के समक्ष तलाशी वारंट जारी करने के लिए निवेदन कर सकता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 97 की परिभाषा:-
यदि किसी जिला मजिस्ट्रेट (DM), उपखण्ड मजिस्ट्रेट(SDM) या प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को यह जानकारी होगी कि कोई व्यक्ति को ऐसे स्थिति में कैद करके रखा गया है अर्थात उसकी इच्छा के विरूद्ध सदोष परिरुद्ध किया है। तब उपर्युक्त मजिस्ट्रेट तलाशी वारण्ट जारी करेगा एवं पुलिस अधिकारी तलाशी पूर्ण होते ही व्यक्ति तुरंत मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करेगा।
नोट:- इस धारा के अधीन जारी किये गए वारण्ट का निष्पादन सम्पूर्ण भारत के भीतर किसी भी स्थान पर हो सकता है।
उधरणानुसार:- परिरुद्ध व्यक्ति एक प्रौढ औरत थी, जो अपने पति के साथ जाने के लिए इच्छुक नहीं है, मजिस्ट्रेट उसे पति के साथ जाने के लिए विवश नहीं कर सकता और उसे उसकी इच्छानुसार कही भी जाने के लिए छोड़ सकता हैं। कोई भी मजिस्ट्रेट एक प्रौढ औरत को उसकी इच्छा के विरुद्ध अभिरक्षा गृह भी नहीं भेज सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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