जब 18 महीने तक सूरज की धूप धरती पर नहीं पड़ी, हमेशा अंधेरा रहा, पढ़िए क्योंकि जानना जरूरी है - GK IN HINDI

Bhopal Samachar
क्योंकि हर रोज सूर्य उदय होता है और पृथ्वी पर जीवित प्राणियों एवं जलवायु के लिए आवश्यक ऊष्मा प्रदान करता है इसलिए किसी को इसका महत्व नहीं पता लेकिन दुनिया के इतिहास में एक ऐसी घटना भी दर्ज है पढ़कर ना केवल रोंगटे खड़े हो जाते हैं बल्कि हर व्यक्ति के मन से एक प्रार्थना निकलती है कि ऐसे दिन दुनिया को कभी मत दिखाना। पूरे 18 महीने तक सूरज की धूप धरती पर नहीं पड़ी थी। आइए जानते हैं कि उस दौरान पृथ्वी पर क्या-क्या हुआ।

यदि सूरज छुप जाए और धरती पर धूप ना आए तो क्या होगा

बात 536 AD की है। हम इसे छठवीं शताब्दी और ईसवी सन 536 भी कहते हैं। पश्चिमी देशों के इतिहास में इसे DARK AGES के नाम से दर्ज किया गया है। यूरोप, मिडिलईस्ट और एशिया के कुछ हिस्सों में अचानक सूर्य की गरम-गरम किरणें धरती तक आना बंद हो गई। सूर्योदय होता था लेकिन आसमान में सूर्य नारायण बिल्कुल शीतल चंद्रमा की तरह दिखाई देते थे। उनके तेज के दर्शन नहीं होते थे। सूर्य की किरणें धरती के इस हिस्से पर आना बंद हो गई थी। चारों तरफ अंधकार छा गया था। दिन हो या रात सब कुछ एक जैसा था। यह क्रम एक-दो दिन या हफ्ते नहीं बल्कि पूरे 18 महीने तक चला। नतीजा वनस्पति नष्ट हो गई, ऑक्सीजन की कमी हो गई, ठंड का प्रकोप बढ़ने लगा, खेतों में फसलें नष्ट हो गई, बीजों में से अंकुरण बंद हो गया, चारों तरफ भुखमरी के हालात थे। लोग भूख से तड़पते हुए मरने लगे। दुनिया में कोई नहीं जानता कि ऐसा क्यों हुआ था।

महामारी फैलने का सबसे प्रमुख कारण 

वैज्ञानिक अभी भी रिसर्च कर रहे हैं परंतु उत्तर भारत के ज्योतिषी मानते हैं कि महामारी फैलने का सबसे प्रमुख कारण भगवान सूर्यनारायण होते हैं। छठवीं शताब्दी में भी ऐसा ही हुआ था। 18 महीने का अंधकार लाखों लोगों की मृत्यु के बाद दूर हो गया लेकिन ईसवी सन 541 में ईस्टर्न रोमन में जस्टिन का प्लेग फैलना शुरू हो गया। यह महामारी इसलिए फैली क्योंकि लोगों में विटामिन डी की कमी हो गई थी। यह महामारी इतनी भयानक थी कि इसमें वहां की 30% से अधिक जनता की मृत्यु हो गई। जैसे रोज सुबह नगर निगम की गाड़ी कचरा उठाने आती है उन दिनों वैसे ही रोज सुबह कचरा गाड़ियों में मरे हुए लोगों की लाशों को भरकर ले जाते थे और समुद्र में फेंक देते थे। इस आपदा से सामान्य होने में यूरोप को पूरे 100 साल लगे थे। 

भारत में सूर्य को देवता क्यों माना जाता है, पूजा क्यों करते हैं 

अब यह प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है कि प्राचीन भारत के वैज्ञानिक (ऋषि-मुनि) वर्तमान के विज्ञान से काफी आगे थे। उन्होंने बीमारियों की दवाइयां नहीं बल्कि शरीर में बीमारी पनपने से रोकने की प्रक्रिया बनाकर रसोईघर के माध्यम से हमारी दिनचर्या में शामिल कर दी थी। इन्हीं ऋषि-मुनियों ने पृथ्वी के समान एक ग्रह सूर्य को ना केवल भगवान बताया बल्कि सूर्य नारायण की पूजा पद्धति में ऐसी चीजों को शामिल किया जिसके कारण भारतवर्ष के भूभाग पर सूर्य का प्रकोप नहीं होगा। दुख की बात यह है कि हमने इसे अंधविश्वास मानते हुए बंद कर दिया है।  Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article

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