इतिहास में भोपाल और भोपाल में इतिहास की कई कहानियां हैं। निश्चित रूप से पर्यटन का प्रमुख केंद्र हो सकती है परंतु सरकार शायद इनका पोटेंशियल समझ नहीं पा रही है। आज लालघाटी के भीषण युद्ध की कहानी पढ़ते हैं। भोपाल में आज भी इस क्षेत्र को लालघाटी कहा जाता है परंतु यहां से गुजरने वाले तो दूर यहां रहने वालों को भी नहीं पता कि इतिहास में क्षेत्र का कितना महत्व है।
भोपाल की पूज्य थाल नदी का नाम हलाली नदी कैसे पड़ा
बात उन दिनों की है जब भोपाल पर नवाबों का शासन नहीं था। दोस्त मोहम्मद खां बेरसिया के पास एक छोटे से क्षेत्र का जमीदार था। वह हमेशा से भोजपाल नगर पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता था लेकिन जगदीशपुर के राजा नरसिंह राव चौहान के सामने वह काफी कमजोर था। इसलिए उसने एक साजिश रची। राजा नरसिंह राव चौहान को संधि पर बात करने के लिए भोज का निमंत्रण भेजा। थाल नदी के किनारे संधि भोज के लिए तंबू लगाए गए। दोस्त मोहम्मद ने नशीले पदार्थ का उपयोग किया और जब राजा नरसिंह राव सहित उनके सभी विश्वस्त मदहोश हो गए तब सबका नरसंहार कर दिया। इस घटना के बाद से थाल नदी का नाम हलाली नदी पुकारा जाने लगा। इसी नदी पर हलालपुर डैम बना हुआ है।
भोपाल की लाल घाटी के युद्ध की कहानी
दोस्त मोहम्मद खां द्वारा धोखे से राजा नरसिंह राव चौहान की हत्या का समाचार सुनकर उनके बेटे ने सेना को संगठित किया और दोस्त मोहम्मद खां पर हमला कर दिया। यह युद्ध इतना भीषण था कि पश्चिम की घाटी खून से लाल हो गई। तभी से इस घाटी को लालघाटी कहा जाता है। इस युद्ध में राजा नरसिंह राव चौहान का बेटा अपनी सेना के साथ अंतिम सांस तक लड़ा। मरते समय भी दोस्त मोहम्मद पर हमला कर रहा था।
भोपाल के जगदीशपुर राज्य का नाम इस्लामपुर कैसे पड़ा
दोस्त मोहम्मद खां ने जगदीशपुर पर कब्जा कर लिया और इसका नाम इस्लामपुर कर दिया। भोपाल के इस हिस्से को आज भी इस्लाम नगर के नाम से जाना जाता है। यहां पर दोस्त मोहम्मद ने अपने कुछ खास परिवारों को बसा दिया था ताकि जगदीशपुर की जनता कभी विद्रोह ना कर पाए।