भोपाल। कटारा हिल्स की लगभग 500 हेक्टेयर की पथरीली पहाड़ी पर अब घना जंगल दिखाई देता है। इस पहाड़ी का मूल नाम इकोलॉजिकल पार्क है। अब तक यहां जंगल नहीं था इसलिए किसी का ध्यान नहीं था। भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार श्री हरिचरण यादव की एक रिपोर्ट के अनुसार फॉरेस्ट डिपार्टमेंट अब इस इलाके पर फोकस करने वाला है। इसे भोपाल शहर का प्रमुख पर्यटन केंद्र बनाया जाएगा।
15 साल पहले वीरान थी पहाड़ी
पत्रकार श्री हरिचरण यादव के अनुसार शहर के कटारा हिल्स क्षेत्र से लगा लहारपुर इलाका है। इसकी सीमा रायसेन जिले से लगती है, जिसकी लंबाई करीब 20 किलोमीटर है। कटारा हिल्स इलाका पहले एकांत क्षेत्र था और मुख्य शहर से दूर माना जाता था। पथरीला इलाका होने के कारण प्राकृतिक रूप से लगे पौधे व पेड़ों की संख्या कम थी, जो थे उन्हें काटा जा रहा था, जगह-जगह अवैध खनन हो रहा था।
वन विभाग ने जंगल को संरक्षित किया है: CCF का दावा
भोपाल वन वृत्त में मुख्य वन संरक्षक रहे डॉ. एसपी तिवारी बताते हैं कि शहर की आबादी बढ़ी तो घने वन क्षेत्र की आवश्यकता महसूस होने लगी। इसके चलते 1997 में वन विभाग ने अपने इस जंगल को संरक्षित करने के प्रयास तेज किए थे। नतीजा यह रहा कि 2006 में लहारपुर वन क्षेत्र को इकोलॉजिकल पार्क का दर्जा देकर तीन हिस्सों में बांट दिया गया।
कटारा हिल्स की पहाड़ी पर नियमित रूप से पौधारोपण हुआ है
बताया जाता है कि लगभग 500 हेक्टेयर की इस पहाड़ी पर नियमित रूप से पौधारोपण किया गया है। यह गतिविधि पिछले 15 साल से चल रही है। आज इस पहाड़ी पर पीपल, बरगद, नीम, पलाश, हर्र, बहेड़ा, आंवला, गुलमोहर, महुआ, बांस, लेंडिया, सागोन, सतपर्णी, बेलपत्र जैसी प्रजाति के 1.40 लाख पौधे लहलहा रहे हैं। जिनकी उम्र अब पांच से 15 साल तक हो चुकी है।
1 लाख पौधे लगाए थे, 1 लाख अपने आप उगाए
पौधारोपण के साथ यहां एक लाख से अधिक पौधे प्राकृतिक रूप से विकसित हुए। पथरीली जमीन पर जंगल विकसित करने के लिए वन विभाग ने पिछले 15 साल में सात करोड़ रुपए खर्च किए हैं। यह राशि पौधे लगाने, उन्हें गर्मी में पानी देने, पौधे और पेड़ों की सुरक्षा करने पर खर्च की गई है।
कटारा हिल्स के इकोलॉजिकल पार्क में जंगल सफारी शुरू करेंगे
भोपाल के जिला वन अधिकारी हरिशंकर मिश्रा कहते हैं कि इकोलॉजिकल पार्क के तीनों चरणों को और विकसित करेंगे। साथ ही यहां जंगल सफारी शुरू करेंगे। भोपाल के वनस्पति जगत पर पहली पीएचडी करने वाले डॉ. सुदेश वाघमारे बताते हैं कि देश के किसी भी शहर और किसी भी राजधानी के पास इकोलॉजिकल पार्क जैसा बड़ा और घना जंगल नहीं है। यह पार्क भोपाल के लिए ऑक्सीजन बैंक है।
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