भोपाल। भारतीय खाद्य निगम भोपाल में रिश्वतखोरी का मामला उजागर होने के बाद इससे जुड़े कई खुलासे हो रहे हैं। इन्वेस्टिगेशन टीम को बताया गया है कि अधिकारी ना केवल रिश्वत लेते थे बल्कि इसी सरकारी ऑफिस में रिश्वत की रकम का पूरा हिसाब किताब रखा जाता था। रिश्वत में आई रकम को कंस्ट्रक्शन और ट्रांसपोर्टेशन के कारोबार में इन्वेस्ट किया जाता था। इन्वेस्टमेंट का सारे अकाउंट्स ऑफिस में बैठकर ही मैनेज किए जाते थे। FCI ऑफिस में क्लर्क के पद पर पदस्थ किशोर मीणा को वेतन तो सरकारी खजाने से मिलता था लेकिन वह रिश्वत की रकम के आय-व्यय का हिसाब रखने का काम करता था।
काले धन की कंपनी का सीईओ था FCI BHOPAL का क्लर्क
उल्लेखनीय है कि, FCI के डिविजनल मैनेजर हर्ष हिनोनिया, मैनेजर (अकाउंट) अरुण श्रीवास्तव, मैनेजर (सिक्यूरिटी) मोहन पराते और क्लर्क किशोर मीणा को एक लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए CBI ने गिरफ्तार किया था। यह कार्रवाई गुरुग्राम की सुरक्षा एजेंसी कैप्टन कपूर एंड संस की शिकायत पर की गई थी। उसके बाद मीणा के घर से तीन कराेड एक लाख रुपये बरामद हुए थे। तब CBI ने उसे रिमांड पर लेकर पूछताछ की। उससे मिली जानकारी पर CBI ने मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में 13 ठिकानों पर छापे मारे। ये ठिकाने विभिन्न कारोबार से जुडे लोगों के हैं।
नगद रिश्वत नहीं लेते थे, कारोबार में निवेश करवाते थे
सूत्रों का कहना है मीणा से मिली जानकारी के अनुसार, हर काम के लिए बड़ी रकम बतौर रिश्वत ली जाती थी। यह राशि रिश्वत के संगठित गिरोह में सीधे देने के बजाय इसे कारोबारियों के माध्यम से निवेश दिखाया जाता था। यह निवेश रिश्वतखोरों के करीबी रिश्तेदारों या दोस्तों के नाम पर होता था। इससे होने वाला मुनाफा ये लोग कानूनी तौर पर वैध कमाई के तौर पर दिखाते थे। यह भी जानकारी मिली है कि कुछ रिश्वतखोरों ने कारोबारियों से हुए मुनाफे को रिश्तेदारों से उधार लेना दिखाया है।
अदने से बाबू ने 5 महीने में ₹9500000 निवेश किए थे
सूत्रों का कहना है CBI रिश्वतखोरों के कुल निवेश की जानकारी जुटा रही है। इसके लिए कारोबारियों से भी पूछताछ की जा रही है। अनुमान है कि निवेश की राशि कराेड़ों रुपये हो सकती है। जैसे मीणा ने नवंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच 95 लाख रुपये का निवेश किया था। इस जानकारी के सामने आने के बाद कोई भी व्यक्ति क्लर्क को अदना सा बाबू नहीं मानेगा।
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