अब तो कुछ एजुकेशन बोर्ड अपना नवीन शिक्षा सत्र अप्रैल से शुरू करने लगे हैं ताकि स्टूडेंट्स रिजल्ट आने के बाद टीसी के लिए अप्लाई न कर पाए लेकिन भारत में 1 जुलाई से नवीन शिक्षा सत्र की शुरुआत करने की पुरानी परंपरा रही है। आज भी माइंडसेट वही है। नियमित कक्षाओं का संचालन 1 जुलाई से ही शुरू होता है। सवाल यह है कि जब नया वर्ष 1 जनवरी से शुरू होता है तो फिर नया शिक्षा सत्र 1 जुलाई से क्यों शुरू किया जाता है।
प्रोफेसर केशव कौशल बताते हैं कि भारत में सभी प्रकार के तीज-त्यौहार, धार्मिक एवं सामाजिक समारोह, यहां तक कि जीवन के सभी महत्वपूर्ण काम मौसम और फसल के आधार पर निर्धारित किए गए हैं। फसल काटने पर हमेशा त्यौहार मनाया जाता है। जब खेतों में किसान सबसे ज्यादा व्यस्त होता है। तब भारत के पंचांग में किसी भी त्योहार का मुहूर्त नहीं होता।
भारत में नवीन शिक्षा सत्र की शुरुआत भी इसी फार्मूले के आधार पर की गई है। जुलाई के महीने में वर्षा ऋतु की शुरुआत होती है। ऐसी स्थिति में नवीन शिक्षा सत्र का शुभारंभ करना उचित होता है। वर्षा के कारण स्कूलों का नियमित संचालन नहीं हो पाता लेकिन इस अवधि (जुलाई एवं अगस्त) का उपयोग करते हुए एडमिशन और शेष प्रक्रियाएँ पूरी कर ली जाती है। इसमें खेल एवं प्रतियोगिताएं भी शामिल है। दीपावली के बाद (नवंबर, दिसंबर, जनवरी, फरवरी) कक्षाओं का गंभीरता पूर्वक संचालन शुरू होता है।
इसके बाद मार्च और अप्रैल के महीने में परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है और फिर मई एवं जून जबकि सूरज की गर्मी के कारण घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। ग्रीष्मकालीन अवकाश निर्धारित कर दिया जाता है। यदि नवीन शिक्षा सत्र का शुभारंभ 1 जनवरी को करेंगे तो परीक्षाओं का आयोजन नवरात्रि एवं दीपावली जैसे त्यौहार के आस पास हो जाएगा जो कि संभव नहीं है।
निश्चित रूप से चिलचिलाती धूप में नियमित कक्षाओं का संचालन नहीं किया जा सकता। इस प्रकार भारत में स्कूलों का संचालन एवं शिक्षा सत्र का शुभारंभ और समापन मौसम के आधार पर किया जाता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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