ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में अमृत योजना में अधिकारी नगर निगम की अपेक्षा ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए अधिक कार्य करते नजर आ रहे हैं। अमृत योजना के टेंडर में शर्त थी कि ठेकेदार को काम के हिसाब से छह-छह माह में भुगतान किया जाएगा, लेकिन ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए अमृत योजना के अधिकारियों ने शर्तों में बदलाव करते हुए छह माह की जगह दो-दो माह में भुगतान करा दिया।
इससे निगम को 40 लाख रुपये का नुकसान हुआ, जबकि ठेकेदार को 58 लाख रुपये का लाभ हुआ। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए अधीक्षण यंत्री ने मुख्य अभियंता को पत्र लिखकर इसकी पूरी जानकारी दी कि किस प्रकार निगम को घाटा हो रहा है, लेकिन इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। अमृत योजना के लिए करीब 700 करोड़ रुपये केंद्र व राज्य सरकार ने दिए थे। इस पैसे को निगम ने बैंक में जमा करा दिया था, जिस पर उसे 10.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर भी मिल रही थी। अमृत योजना के कार्य के लिए इन पैसों से नगर निगम ठेकेदार को भुगतान कर रही थी।
टेंडर के समय शर्त डाली गई थी कि ठेकेदार को उसके कार्य के एवज में हर छह माह में कार्य प्रगति व कार्य पूर्णता के हिसाब से भुगतान किया जाएगा। इससे ठेकेदार को छह माह तक कार्य को पूर्ण करने में अपने पैसे लगाने पड़ते, जिससे उसे ब्याज का नुकसान होता। अमृत योजना के तहत जलालपुर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया गया है। साथ ही वहां तक सीवेज को लाने के लिए सीवर लाइन भी डाली गई हैं। इस कार्य में अभी तक करीब 88 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है, लेकिन ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए छह माह में बिलों के भुगतान की जगह-दो-दो माह में भुगतान किया गया है।
अमृत योजना में ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए शर्तों में किए गए बदलाव पर अधीक्षण यंत्री ने नगर निगम आयुक्त को पत्र लिखा था, इस पत्र में लिखा गया था कि ठेकेदार ने प्रमुख अभियंता की बैठक में पेमेंट का मुद्दा उठाया था, जबकि अनुबंध में प्रविधान है कि ठेकेदार को भुगतान के कारण प्रगति बाधित होती है तो उसे 10 प्रतिशत अग्रिम भुगतान राष्ट्रीयकृत बैंकों की ब्याज दर से किया जा सकता है। साथ ही उसकी वसूली अनुबंध अवधि में की जाए, लेकिन ठेकेदार को 11 करोड़ से अधिक की राशि का भुगतान किया गया, जिससे निगम को 40 लाख रुपये की हानि हुई है।
वर्जन-
अनुबंध में ठेकेदार काे छह-छह माह में भुगतान की शर्त रखी गई थी, जिसे ठेकेदार ने टेंडर उठाते समय स्वीकार किया था। बाद में अधिकारियाें की मिलीभगत से शर्ताें में बदलाव किया गया। इस मामले में मैनें निगमायुक्त काे भी पत्र लिखा था, लेकिन काेई कार्रवाई नहीं हुई। इसके चलते अधिकांश भुगतान बदली शर्ताें के अनुसार किए गए हैं।
RLS माैर्य, अधीक्षण यंत्री, नगर निगम PHE
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