परिबद्ध का अर्थ होता है कानूनी कब्जा या किसी भी दस्तावेजों या वस्तु को कानूनी अभिरक्षा में रखना। इस प्रक्रिया को परिबद्ध कहा जाता है। कई बार कोर्ट इस प्रकार के दस्तावेज अथवा वस्तुओं को परिबद्ध कर लेता है, जिनका वैधानिक स्वामित्व किसी अन्य व्यक्ति के पास होता है। सवाल यह है कि किस कानून ने कोर्ट को यह अधिकार दिया कि वह किसी व्यक्ति के वैधानिक स्वामित्व वाली वस्तु अथवा दस्तावेज को परिबद्ध कर सके। आइए पढ़ते हैं:-
किसी दस्तावेज या वस्तु को जब न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है तब अगर न्यायालय को लगता है कि दस्तावेजों या वस्तुओं को न्यायालय की अभिरक्षा में रखना अनिवार्य है तब न्यायालय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 104 के अंतर्गत ऐसे दस्तावेजों को कानूनी अभिरक्षा में अपने पास रख सकता है। लेकिन ऐसे दस्तावेज जो अन्य अधीनस्थ मजिस्ट्रेट के समक्ष किसी लम्बित वाद में प्रस्तुत किया जाएंगे वह दस्तावेज किसी भी जिला मजिस्ट्रेट द्वारा परिबद्ध नहीं किए जा सकते हैं। उच्च न्यायालय किसी भी प्रकार के कूटरचित दस्तावेज को परिबद्ध कर सकता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 104 की परिभाषा:-
कोई दस्तावेज,वस्तु,चीज आदि न्यायालय के समक्ष, तलाशी वारण्ट, जब्ती वारण्ट या किसी अन्य तरीके से न्यायालय में पेश कि जाती हैं, तब न्यायालय को लगता है कि दस्तावेज या वस्तु को कानूनी अभिरक्षा में रखना सही है तब न्यायालय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 104 की शक्ति का प्रयोग करके उन्हें अपने पास परिबद्ध कर सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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