MP में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल से जनता नाराज, सरकार से लड़ाई में मरीजों को क्यों मार रहे हैं - NEWS TODAY

Bhopal Samachar
भोपाल।
मध्य प्रदेश में पिछले कुछ समय से डॉक्टरों ने बात-बात पर हड़ताल करना शुरू कर दिया है। कोरोनावायरस महामारी संकटकाल में इस तरह की हड़ताल जानलेवा साबित हो रही है। जूनियर डॉक्टरों ने पहले दिन ओपीडी और इमरजेंसी, दूसरे दिन COVID और आज तीसरे दिन ब्लैक फंगस के मरीजों का इलाज बंद कर दिया। सोशल मीडिया पर पब्लिक भड़क रही है। सरकार से मांग कर रही है कि ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इधर उनको पढ़ाने वाले सीनियर डॉक्टरों ने भी हड़ताल का समर्थन किया है। 

जूनियर डॉक्टर क्यों हड़ताल कर रहे हैं

जूनियर डॉक्टरों का कहना है कि उन्होंने 25 दिन पहले 1 दिन की हड़ताल के दौरान चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग और स्वास्थ विभाग के अधिकारियों ने उन्हें आश्वासन दिया गया था कि उनकी चार मांगों को सरकार मान लेगी। इस आश्वासन के बावजूद भी सरकार की तरफ से उनकी मांगों को लेकर कोई भी लिखित में आदेश जारी नहीं किया गया है। 31 मई तक का अल्टीमेटम सरकार को जूनियर डॉक्टरों ने दिया था। 

हड़ताली डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन कैंसिल किया जाएगा: GMC

इधर जूनियर डॉक्टरों ने कोरोना के साथ ब्लैक फंगस का इलाज भी बंद कर दिया है। इससे आम मरीजों के साथ कोरोना और ब्लैक फंगस को मरीजों को दिक्कत हो रही है। हड़ताल के मद्देनजर गांधी मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने सख्ती शुरू कर दी है। जीएमसी प्रबंधन ने हड़ताल पर गए डॉक्टरों की सूची मैन गेट पर चस्पा कर दी है। उनको चेतावनी दी है कि कार्य स्थल पर उपस्थित नहीं होने पर संबंधित डॉक्टर्स के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उनका रजिस्ट्रेशन निरस्त किया जायेगा। 

मरीजों के साथ नाइंसाफी सहन नहीं करेंगे: चिकित्सा शिक्षा मंत्री

विश्वास सारंग ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस समय समाज को सबसे ज्यादा डॉक्टरों की जरूरत है उस समय जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर जा रहे हैं। सरकार ने उनकी मांगें मानी है और उन्हें प्रतिमाह 60 हजार रुपये से लेकर 70 हजार तक का स्टाइपेंड दिया जा रहा है. उनकी 6 मांगों में से 4 मांगों को मान भी लिया गया है, लेकिन उसके बाद भी हठधर्मिता कर रहे हैं। सारंग ने कहा कि मैंने निवेदन किया है कि वह जल्द से जल्द काम पर वापस आएं और यदि नहीं आते हैं तो मजबूरन हमें कार्रवाई करनी पड़ेगी। उन्होंने कहा मरीजों के साथ यदि नाइंसाफी होगी तो यह सहन करना मुश्किल रहेगा।

जूनियर डॉक्टरों की मांगे

मानदेय में बढ़ोतरी कर इसे 55 हजार, 57 हजार, 59 हजार से बढ़ाकर क्रमश: 68200, 70680, और 73160 किया जाए।
मानदेय में हर साल छह फीसदी की बढ़ोतरी की जाए।
कोविड ड्यूटी को एक साल की अनिवार्य ग्रामीण सेवा मानकर बॉन्‍ड से मुक्त किया जाए।
कोविड में काम करने वाले डॉक्टरों व उनके स्वजन के लिए अस्पताल में इलाज की अलग व्यवस्था हो।
कोविड ड्यूटी में काम करने वाले डॉक्टरों को सरकारी नियुक्ति में 10 फीसदी अतिरिक्त अंक दिए जाएं। 

जनता क्या बोली

vishal makwa ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से निवेदन किया है कि 'आदरणीय मुख्यमंत्री जी, मेरे पिता जी इंदौर के एम वाई हॉस्पिटल वार्ड 18 में भर्ती है। उनका फंगस का इलाज चल रहा था जिसकी गति इतनी धीमी रही कि अब उनका चेस्ट इन्फेक्शन भी बढ़ गया, इस परिस्थिति में जूनियर डॉक्टर की हड़ताल होने से परिस्थिती ज्यादा गंभीर हो गई है।
santosh Bohara ने सवाल किया है कि 'ये वही रेसिडेंट डॉक्टर हैं ना जो अपनी माँगे मनाने के लिए मरीज़ों को तड़फते हुए छोड़कर हड़ताल पर चले जाते है।' 
Sumit Singh ने बताया है कि मध्यप्रदेश के डॉक्टर हड़ताल पर, ऑपरेशन टले, मरीज़ों की जान मुश्किल में। 

डॉक्टर इलाज करने के लिए हैं या फिर हड़ताल करने के लिए

कुछ दिनों पहले रीवा में जूनियर डॉक्टरों ने एक मरीज को ओपीडी में बंधक बनाकर बेरहमी से पीटा था। जब उनके खिलाफ FIR दर्ज हुई तो उन्होंने पुलिस अधीक्षक के सामने हड़ताल की धमकी दी। कल मंगलवार को शिवपुरी जिले के करैरा में एक डॉक्टर का रोड पर एक्सीडेंट हो गया। इसी बात से नाराज होकर डॉक्टर हड़ताल पर चले गए। 

इलाज करते हुए भूख हड़ताल करो, पब्लिक साथ देगी 

यदि डॉक्टरों को लगता है कि उनकी मांगे सही है और सरकार को तत्काल लिखित आदेश जारी करना चाहिए तो मरीजों को मरने के लिए तड़पता हुआ छोड़ने के बजाय उनका इलाज करते हुए भूख हड़ताल करें। जनता न केवल साथ देगी बल्कि वह हालात पैदा कर देगी कि सरकार को डॉक्टरों की मांगें माननी पड़े। इस पेशे को नोबल प्रोफेशन इसीलिए कहा जाता है क्योंकि एक डॉक्टर खुद बीमार होने की स्थिति में भी मरीजों का इलाज करता है। इलाज करना डॉक्टर का पहला कर्तव्य है चाहे उसे वेतन मिले अथवा ना मिले। यदि डॉक्टर जनता की सेवा करेंगे तो जनता निश्चित रूप से सरकार को झुका देगी। लेकिन काम बंद करना ना तो नैतिकता की दृष्टि से उचित है और ना ही कानूनी नजरिए से।

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