भोपाल। प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में सत्र 2020-21 में कार्यरत अतिथि विद्वानों को उच्च शिक्षा विभाग ने पुनः रिकॉल के आदेश जारी कर दिए हैं। नए प्रारंभ हो रहे सत्र में सरकार ने तैयारी शुरू कर दी है। इसी तारतम्य में कार्यरत अतिथि विद्वानों को नए सत्र के लिए रिकॉल क़िया गया है।
उल्लेखनीय है कि माननीय उच्च न्यायालय द्वारा अतिथि विद्वानों के निरंतरता का आदेश दिया गया है।अतिथि विद्वान लम्बे अरसे से नियमितिकरण की मांग कर रहे हैं,साथ ही अतिथि विद्वान महासंघ तात्कालिक राहत के रूप में सेवा शर्तों में सुधार के साथ-साथ,बढ़ती महंगाई को दृष्टिगत रखते हुए यूजीसी गाइड लाइन के अनुसार न्यूनतम मानदेय भुगतान की मांग कर रहा है लेकिन इस मामले में भी अतिथि विद्वानों को निराशा ही हाथ लगी है।महासंघ के अध्यक्ष डॉ देवराज सिंह ने कहा है कि कोरोना काल मे अतिथि विद्वानों के लिए आकस्मिक व चिकित्सा अवकाश के साथ साथ अन्य सेवा शर्तों में सुधार किया जाना अत्यावश्यक हो गया है।
कई अतिथि विद्वान हो चुके हैं कोरोना महामारी के शिकार
अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ मंसूर अली ने कहा है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान कई अतिथि विद्वान असमय काल कवलित हो चुके हैं।वर्षों विभाग कि सेवा करने के बावजूद सेवा शर्तों में सुधार न हो पाने के कारण मृत्य के बाद भी अतिथि विद्वानों के परिजनों को शासकीय सुविधा का कोई लाभ नही मिल पाता है।कोरोना की दूसरी लहर की व्यापकता व उसके घातक परिणामों के प्रकाश में अब यह अत्यावश्यक हो चुका है की अतिथिविद्वानों को भी आकस्मिक तथा चिकित्सा अवकाश जैसी सुविधाओं का लाभ दिया जाए।
अतिथि विद्वानों का भविष्य सुरक्षित करे सरकार
अतिथि विद्वान महासंघ वा मोर्चा के मीडिया प्रभारी डॉ आशीष पांडेय का कहना है कि वर्तमान सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने अतिथि विद्वान नियमितीकरण का भरोसा दिलाया था,दुर्भाग्यपूर्ण है कि नियमितीकरण तो दूर आज तक फॉलेन ऑउट अतिथि विद्वानों को सेवा में वापस लाने के लिए और 450 पदों को स्वीकृति देने की दिशा में भी एक कदम नहीं बढ़ा सके हैं।जबकि प्रदेश के अतिथि विद्वानों को इस सरकार से फॉलेन आउट अतिथि विद्वानों को सेवा बहाली और नियमितीकरण की पूरी उम्मीद थी।
डॉ आशीष पांडे ने कहा कि हम एक बार फिर से सरकार से मांग करते हैं की तत्काल सभी फॉलेन ऑउट अतिथि विद्वानों को सेवा में वापस लिया जाए और अतिथि विद्वानों का भविष्य सुरक्षित करने की दिशा में कोई ठोस नीति बनाई जाए।जब तक अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण के लिए कोई नीति नहीं बन जाती तब तक के लिए तत्कालिक राहत के रूप में अतिथि विद्वानों को यूजीसी द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानदेय देते हुए सेवा शर्तों में सुधार किया जाए।
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