पौराणिक धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार गणेशजी को दूर्वा अवश्य चढ़ाना चाहिए। अनलासुर नामक एक राक्षस था। वह देखने में भयानक लगता था। वह साधु संतों को जीवित अवस्था में ही निगल जाता था। सभी बड़े दु:खी और अशान्त थे। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। सभी सन्तजनों ने गणेशजी से प्रार्थना की कि वे इस दानव से मुक्ति प्रदान करें और उनकी रक्षा करें।
गणेशजी ने सन्तों की प्रार्थना सुनी और वे अनलासुर राक्षस के पास गए। उन्होंने राक्षस को निगल लिया। ऐसा करने से गणेशजी के पेट में जलन होने लगी। गणेशजी बड़े परेशान हो गए। कश्यप ऋषि ने उन्हें हरी दूर्वा की इक्कीस और ग्यारह गाँठ चढ़ाई। इस प्रकार गणेशजी के पेट की जलन का शमन हो गया। तभी से गणेशजी को दूर्वा चढ़ाने की परम्परा चली आ रही है। कुछ धार्मिक ग्रन्थों में गणेशजी को दूर्वा की माला पहनाने का वर्णन भी प्राप्त होता है। दूर्वा एक सर्वसुलभ घास होती है जो बारीक होती है।
इसकी तीन या पाँच की संख्या में इक्कीस या ग्यारह गाँठें बनाई जाती है। पवित्र स्थानों की दूर्वा का ही पूजन में उपयोग किया जाना चाहिए। भक्त अपने सामर्थ्य के अनुसार ही हरी या सफेद दूर्वा का उपयोग कर सकते हैं। गणेश चतुर्थी, बुधवार या अन्य कोई भी पूजन विधान हो भक्तजन सर्वप्रथम गणेशजी का ही पूजन करने की व्यवस्था करते हैं।