नई दिल्ली। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत वैज्ञानिकों ने एक ऐसा फार्मूला खोज निकाला है जिसके कारण इलेक्ट्रिक वाहनों का खर्चा आधा हो जाएगा। जिस वाहन की बैटरी एक बार चार्ज होने पर 50 किलोमीटर रेंज देती है, इस फार्मूले के बाद वह 100 किलोमीटर रेंज देने लगेगी। शोधकर्ताओं ने लिथियम-आयन बैटरियों के लिए लिथियम मेटल ऑक्साइड इलेक्ट्रोड्स पर कार्बन की परत चढ़ाने के लिए एक कम खर्चीला तरीका विकसित किया है। इन इलेक्ट्रोड सामग्रियों के इस्तेमाल से सुरक्षित कार्बन कोटिंग के चलते लिथियम आयन सेल्स का जीवन दोगुना हो जाने का अनुमान है।
लिथियम-आयन बैटरियों को आम तौर पर इलेक्ट्रिक वाहनों में ऊर्जा के स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, गैसोलिन आधारित वाहनों में रोजमर्रा में इस्तेमाल बढ़ाने के लिए इसके जीवनकाल और लागत के साथ ही प्रति चार्ज माइलेज में खासा सुधार किए जाने की जरूरत है। लिथियम-आयन बैटरियों के सक्रिय घटकों में कैथोड, एनोड और इलेक्ट्रोलाइट हैं। जहां वाणिज्यिक ग्रेफाइट को एनोड के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, वहीं लिथियम मेटल ऑक्साइड या लिथियम मेटल फॉस्फेट को लिथियम आयन बैटरी में कैथोड के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
इलेक्ट्रोलाइट ऑर्गनिक सॉल्वेंट्स में घुला हुआ एक लिथियम साल्ट है। लिथियम-आयन बैटरी की क्षमता इलेक्ट्रिक वाहन का माइलेज निर्धारित करती है। क्षमता 80 प्रतिशत तक घटने से पहले, चार्जिंग साइकिल की संख्या बैटरी का जीवनकाल तय करती हैं।
ज्यादातर रसायनों में निष्क्रिय और ऑपरेटिंग विंडो के अंतर्गत स्थिर होते हुए कार्बन, सक्रिय मैटेरियल्स के चक्रीय स्थायित्व में सुधार के उद्देश्य से सबसे अच्छा कोटिंग मैटेरियल है। सक्रिय मैटेरियल्स पर कार्बन कोटिंग से लिथियम-आयन सेल्स का जीवनकाल दोगुना हो सकता है। हालांकि, लिथियम मेटल ऑक्साइड पर कार्बन की कोटिंग काफी चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि एक बार में लिथियम मेटल ऑक्साइड मैटेरियल के संश्लेषण के दौरान कार्बन की कोटिंग में काफी मुश्किल होती है।
इस समस्या के समाधान के लिए, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स (एआरसीआई) के शोधकर्ताओं ने एक बार में लिथियम ट्रांजिशन मेटल ऑक्साइड के आसपास कार्बन की परत चढ़ाने की एक तकनीक विकसित की है, जबकि ऑक्साइड खुद ही संश्लेषित होता है। आम तौर पर, एक दूसरे उपाय के इस्तेमाल से ऑक्साइड मैटेरियल्स पर कार्बन की परत चढ़ाई जाती है, जो एक समान नहीं है और खासी महंगी भी है।
एआरसीआई की विधि में, ठोस अवस्था में संश्लेषण के दौरान, जब हवा में गर्मी पैदा होती है तो ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया को न्यूनतम करने के लिए ट्रांजिशन मेटल हाइड्रॉक्साइड के बीच में एक कार्बन प्रीकर्सर फंस जाता है। इस तकनीक के माध्यम से लिथियम ट्रांजिशन मेटल ऑक्साइड – एलआईएनआई 0.33एमएन0.33Co0.33O2 (एनएमसी111) पर एक समान कार्बन कोटिंग की गई थी।
कार्बन-कोटेड एनएमसी111 के इस्तेमाल से निर्मित लिथियम-आयन सेल्स का इलेक्ट्रोकेमिकल प्रदर्शन लगभग लिथियम-लेयर्ड ऑक्साइड कैथोड के समान ही है। वाणिज्यिक नमूनों के अनुरूप उपयुक्त कार्बन मोटाई के साथ कार्बन की परत वाले उत्पाद ने 1,000 बार चार्जिंग/ डिसचार्जिंग के बाद 80 प्रतिशत से ज्यादा धारण क्षमता के साथ उत्कृष्ट चक्रीय स्थायित्व का प्रदर्शन किया है। एआरसीआई के शोधकर्ताओं का अनुमान है कि प्रक्रिया को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाने का काम जारी रखते हुए एक बार लैब-स्केल बैच प्रक्रिया को लागू करने के बाद इलेक्ट्रोकेमिकल प्रदर्शन में सुधार देखने को मिलेगा।
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