आपने अक्सर देखा होगा लोग एक दूसरे से बातचीत के दौरान यदि किसी जालसाज व्यक्ति के बारे में बात कर रहे होते तो उसे 420 कहकर पुकारते हैं (वह तो 420 आदमी है)। सवाल यह है कि जब आईपीसी की भाषा में बात करते हैं तो फिर महिलाओं को घूरने वाले व्यक्ति को 354 और ऑफिस से स्टेशनरी चुराने वाले को 379 क्यों नहीं कहते।
420 क्या है, इस संख्या से लोगों की पहचान क्यों की जाती है
भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860 (IPC)) के तहत भारत में अपराध को परिभाषित किया गया है और अपराधियों को दंडित करने का प्रावधान है। लोगों से ठगी अथवा जालसाजी करना आईपीसी की धारा 420 के तहत दंडनीय अपराध है। आम बातचीत में जिस 420 संख्या का उपयोग किया जाता है, वह यही है। इसका आशय होता है कि संबंधित व्यक्ति जालसाज है अथवा ठग है।
मनचले को 354 चोर को 379 क्यों नहीं कहते
समाज में कई तरह के अपराध होते हैं। आईपीसी की धाराओं में हर अपराध को सूचीबद्ध किया गया है। महिलाओं को घूरना आईपीसी की धारा 354 के तहत अपराध है और ऑफिस से पेन पेंसिल की चोरी करना भी आईपीसी की धारा 379 के तहत अपराध है परंतु ठगी के अलावा किसी भी प्रकार के आदतन अपराधी की पहचान आईपीसी की धारा से नहीं की जाती।
इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि ठगी या जालसाजी भारतीय समाज में व्याप्त सबसे प्राचीन अपराध है जिसके अपराधियों की संख्या अन्य से कहीं ज्यादा है। यह इसलिए भी गंभीर हो जाता है क्योंकि ठगी अथवा जालसाजी में पीड़ित व्यक्ति की भावनाओं अथवा विश्वास को तोड़ा जाता है। भारत के लोग काफी संवेदनशील होते हैं। वह कितना भी नुकसान उठाने के लिए तैयार है परंतु विश्वासघात का कष्ट वह सहन नहीं कर पाते। इसीलिए जालसाज लोगों की पहचान के लिए 420 संख्या का उपयोग किया जाता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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