लॉकडाउन के पूरे डेढ़ साल से अधिक का समय निकल गया है, पिछले मार्च 2020 के बाद से स्कूल का संचालन बंद हैं। ऐसी स्थिति में सभी बच्चे घर पर है, जैसे उन्हें एक लम्बी छुट्टी मिल गई हो। बच्चों को छुट्टी सबसे प्यारी होती है। संयुक्त परिवार में जहाँ बहुत सदस्य होते हैं ऐसे में बच्चों लालन-पालन का कार्य सभी में बंट जाता है। वहीं एकल परिवार में बच्चों के माता-पिता पर ही बच्चों का सुबह से लेकर शाम तक की दिनचर्या का कार्य होता है।
नौकरी पेशा माता-पिता के पास बच्चों के साथ समय बिताने के लिए बहुत कम समय होता है। वह बच्चों के साथ जितना समय व्यतीत करते है उससे सम्पूर्ण जिम्मेदारी एवं पूर्ण शिक्षा के लिए एकल परिवार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बच्चे अपने मन की करना चाहते है, आसपास के बच्चों से अपनी तुलना करते हैं, अन्य बच्चों के संसाधन से अपने पास के सामान की तुलना करते हैं। यदि उनको उनकी मर्जी अनुसार संसाधन एवं सुविधाएँ नहीं मिलती है तब बच्चों में जिद्दीपन, चिडचिडापन, रोना, सामान को फेंकना, अपने को नुकसान पहुँचाना आदि आदत की शुरुआत होती है। बच्चों में जिद्दीपन एवं अवसाद के कुछ कारण जिससे उनका मानसिक बदलाब आता है –
जरुरत या मांग पूरी न होना –
हर बच्चा चाहता है कि उसके अनुसार जो चाह गया है उसे उसके बोलते ही प्राप्त हो जाये, वह अपने मम्मी-पापा या परिवार के लोगों से उसे पाने की बात रखता है, इसकी इच्छा बगैर विलम्ब किये पूरी हो जाती है तो उनका मनोबल और बढ़ जाता है। इसका फायदा उठाकर कई बार वह कुछ ऐसी चीज की मांग करने लगता है जिसकी अभी कोई जरुरत नहीं होती है या वह अनावश्यक होती है। यदि वह चीज बच्चों को नहीं मिली तो बच्चे उसे पाने के लिए जिद करने लगते है और उनमे चिडचिडापन आता है।
बड़ो की रोकटोक –
अधिकतर समय बच्चे ऐसे काम करते है जो बड़े उन्हें करने से मना करते हैं। ऐसे में बच्चे बढ़ों की डांट का सामना करते है। बच्चे का शरारत एवं उनकी मस्ती बच्चों का स्वाभाव होता है इस स्वाभाव के कारण कुछ बच्चे इतने ज्यादा नटखट होते है कि उनके हर कार्य को रोकना पड़ता है एवं उनपर हमेशा नजर रखना होता है ऐसे में बच्चे बड़ो की दखल पसंद नहीं करते है और उनमे अवसाद बढता चला जाता है।
चिड़ाना और परेशान करना -
कई बार देखा गया है कि छोटे बच्चे इतने सुन्दर होते है कि उनको प्यार करने का मन स्वाभाविक होने लगता है। ऐसे में बच्चों को उठाना, गोद में लेना, गाल खीचना, उनको चिड़ाना या ऐसा करना जिससे वह विरोध करे ऐसा करने लगते है; इससे भी बच्चों के मन में अवसाद उत्पन्न होता है और बच्चा चिड़चिड़ापन होने लगता है। इसका हमें विशेष ध्यान देना चाहिए कि आपका यह स्वाभाव बच्चे के मन में कोई विकृति पैदा न करें। यह अवसाद कुछ बच्चों के लिए जीवन भर चलता है और वह हर किसी को उसको चिड़ाने की दृष्टी से ही देखने लगता है।
टीवी एवं मोबाइल पर रोक –
आज की व्यस्तम समय में मनोरंजन के साधन में सबसे ज्यादा समय जाता है तो वह टीवी के सामने कोई कार्यक्रम देखना होता है। बड़ों के कार्यक्रम बच्चों को पसंद नहीं होते हैं इसलिए बच्चे अपने मन पसंद कार्यक्रम कार्टून, मोबाइल में गेम, वीडिओ गेम, यूट्यूब में वीडियो, सोशल मीडिया में समय बिताना आदि पसंद करते हैं। बड़े उन्हे ऐसा करने से रोकते हैं और इस कारण से उनका गुस्सा बड़ो के प्रति बढ़ते रहता है और बच्चों को गुस्सेल एवं जिद्दी बना देता है।
अत्यधिक सुविधा प्रदान करना –
हर एक माता-पिता बच्चों की जरुरत का पूरा ख्याल रखते हैं। हर चीज जिससे बच्चे खुश रहे की व्यवस्था में लगे रहते है। अभिभावक चाहते है कि किसी चीज की कमी न रहे जिससे उसके अरमान में कोई कमी पड़े; इसलिए उनकी आवश्यकता की पूर्ति करने में विलम्ब नही करते। इससे बच्चे के मन में एक बात घर कर जाती है कि मैं जो मांगूंगा वह मुझे मिल जायेगा। और यदि उसकी इच्छा पूर्ति नहीं होती है तो उसके मन में नकारात्मक विचार एवं अवसाद वाले विचार उत्पन्न होते है।
क्या करें, कोरोना काल में बच्चों का पालन पोषण किस प्रकार करें
बच्चों का बचपन एक गीली मिटटी के सामान होता है इस उम्र में उसे जैसा आकर दिया जाए वह वैसा जी ढ़ल जाता है। बच्चों की परवरिश बहुत ही संवेदनशील कार्य होता हैं। इसे बहुत ही जिम्मेदारी से पूर्ण करने की आवश्यकता है। हमें बच्चों की भावनाओ को समझते हुए उसे यथासंभव माहौल देने के लिए कार्य करना होगा। बच्चे के बाल मन को समझते हुए उसके साथ कार्य एवं व्यवहार करना होगा। बच्चों की इस समय की सीख उसके जीवन पर्यन्त आगे बढ़ाने में सहायक होगी। ✒ लेखक: श्याम कुमार कोलारे, सामाजिक कार्यकर्त्ता, शिक्षा चिन्तक, भोपाल (म.प्र.) मोबाइल : 9893573770