प्राचीन सिद्ध 108 महाशक्तिपीठ शाकम्भरी देवी सिद्धपीठ, सहारनपुर उत्तर प्रदेश में स्थित भारत का महत्वपूर्ण मंदिर है जो सहारनपुर से 40 किमी दूर बेहट तहसील में शिवालिक पहाड़ियों में स्थित है। यह भारत के सबसे लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं। साल भर मेला सा लगा रहता है। मान्यता है कि माता शाकंभरी अत्यंत संवेदनशील है एवं अपनी संतानों को दुखी नहीं देख पातीं। तत्काल उनके कष्ट दूर कर देती हैं। जैसे उन्होंने अकाल ग्रस्त क्षेत्र में हरियाली ला दी थी।
भीमा-भ्रामरी और शताक्षी के साथ विराजमान हैं शाकुंभरी देवी
माना जाता है कि शिवालिक पर्वत श्रृंखला के बीच में स्थित यह मंदिर मराठों द्वारा बनवाया गया है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता के अनुसार इस स्थान पर देवी सती का शीश यानी सिर गिरा था। मंदिर में अंदर मुख्य प्रतिमा शाकुंभरी देवी की है। इनके दाईं ओर भीमा व भ्रामरी और बायीं ओर शताक्षी देवी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है।
मंदिर परिसर में प्रथम भक्त चरवाहे की समाधि बनी हुई है
जनश्रुतियों के अनुसार देवी के इस धाम के प्रथम दर्शन एक चरवाहे ने किये थे, जिसकी समाधि आज भी मंदिर परिसर मे बनी हुई है। देवी के मंदिर से कुछ दूरी पर भूरा देव का मंदिर है, जो भैरव महाराज को समर्पित है। भूरा देव को देवी शाकुंभरी के रक्षक
के रूप में पूजा जाता है। भक्त पहले भूरा देव के दर्शन करके उनसे अनुमति प्राप्त करते हैं फिर देवी के मंदिर में आते हैं।
माता के आंसुओं से अकाल समाप्त होकर हरियाली छा गई थी
दानवों के उत्पात से त्रस्त भक्तों ने कई वर्षों तक सूखा एवं अकाल से ग्रस्त होकर देवी दुर्गा से प्रार्थना की। तब देवी इस अवतार में प्रकट हुईं, उनकी हजारों आखें थीं। अपने भक्तों को इस हाल में देखकर देवी की इन हजारों आंखों से नौ दिनों तक लगातार आंसुओं की बारिश हुई, जिससे पूरी पृथ्वी पर हरियाली छा गई। यही देवी शताक्षी के नाम से भी प्रसिद्ध हुई एवं इन्ही देवी ने कृपा करके अपने अंगों से कई प्रकार की शाक, फल एवं वनस्पतियों को प्रकट किया। इसलिए उनका नाम शाकंभरी प्रसिद्ध हुआ।
शास्त्रों में माता शाकंभरी के स्वरूप का वर्णन
धर्म ग्रंथों के अनुसार देवी शाकंभरी आदिशक्ति दुर्गा के अवतारों में एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शाकंभरी प्रसिद्ध हैं। दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में देवी शाकंभरी के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार है-
शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।
मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।
अर्थात- देवी शाकंभरी का वर्ण नीला है, नील कमल के सदृश ही इनके नेत्र हैं। ये पद्मासना हैं अर्थात् कमल पुष्प पर ही विराजती हैं। इनकी एक मुट्ठी में कमल का फूल रहता है और दूसरी मुट्ठी बाणों से भरी रहती है।
शाकुंभरी मंदिर सहारनपुर कैसे पहुंचें
दिल्ली से सड़क मार्ग के रास्ते सीधे आ सकते हैं। 182 किलोमीटर पड़ता है।
पंजाब की ओर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए अंबाला वाया यमुना नगर मार्ग अत्याधिक सुगम है।
चंडीगढ़ से पंचकूला होते हुए नेशनल हाईवे 73 द्वारा सीधे सहारनपुर पहुंचा जा सकता है।
सहारनपुर के निकटतम हवाई अड्डा देहरादून चंडीगढ़ और दिल्ली है जो लगभग 50 से 150 किलोमीटर तक के दायरे में हैं।
हिमाचल प्रदेश से आने वाले श्रद्धालु पौंटा साहिब से हथिनी कुंड बैराज होते हुए बेहट पहुंच सकते हैं। यहां से शाकंभरी देवी का मंदिर 16 किमी दूर है। इस मार्ग में सहारनपुर नहीं पड़ता।