भारत में साबुन की बिक्री लीबर ब्रदर्स इंग्लैंड ने शुरू की थी। नॉर्थ वेस्ट सोप कंपनी ने 1897 में उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में साबुन का पहला कारखाना लगाया और जमशेद जी टाटा ने 1918 में केरल के कोच्चि में स्वदेशी साबुन (OK) का कारखाना लगाया। यानी कि भारत में साबुन की शुरुआत अंग्रेजी शासनकाल में हुई। वाशिंग पाउडर इसके बाद आया। सवाल यह है कि इससे पहले राजा-रानियों के रेशमी वस्त्र किस प्रकार से धोए जाते थे। साबुन नहीं था तो फिर किसका उपयोग करते थे।
भारत में बहुमूल्य वस्त्रों की धुलाई का ऑर्गेनिक तरीका
भारतवर्ष वनस्पति और खनिज से संपन्न भू भाग रहा है। यहां एक पेड़ होता है जिसे रीठा कहा जाता है। यह काफी उपयोगी पेड़ है। राजाओं के महलों में रीठा के पेड़ अथवा रीठा के उद्यान लगाए जाते थे। महंगे रेशमी वस्त्रों को कीटाणु मुक्त और साफ करने के लिए रीठा आज भी सबसे बेहतरीन ऑर्गेनिक प्रोडक्ट है। पानी में रीठा के फल डालकर उसे गर्म किया जाता है। ऐसा करने से पानी में झाग उत्पन्न होता है। इसमें कपड़े डाल कर धुलाई करने पर कपड़े ना केवल साफ दिखाई देते हैं बल्कि कीटाणु मुक्त भी हो जाते हैं। शरीर पर किसी प्रकार का रिएक्शन नहीं करते।
साबुन के पहले आम नागरिक अपने कपड़े कैसे धोते थे
ग्रामीण क्षेत्रों में खाली पड़ी भूमि पर, नदी-तालाब के किनारे अथवा खेतों में किनारे पर सफेद रंग का पाउडर दिखाई देता है जिसे 'रेह' भी कहा जाता है। भारत की जमीन पर यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसका कोई मूल्य नहीं होता। इस पाउडर को पानी में मिलाकर कपड़ों को गला दिया जाता है। इसके बाद कच्चे धागे वाले कपड़ों को हादसे और पक्के धागे वाले कपड़ों को लकड़ी की कुटनी से पीटकर साफ कर लिया जाता है।
रेह पाउडर की विशेषता
रेह एक बहुमूल्य खनिज है। इसमें सोडियम सल्फेट, मैग्नीशियम सल्फेट और कैल्शियम सल्फेट यहां तक कि विषाणु - कीटाणुनाशक नमक जिसका छिड़काव आजकल कोरोना महामारी में हो रहा है सोडियम हाइपोक्लोराइट भी पाया जाता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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