भोपाल (उपदेश अवस्थी)। राजनीति के इतिहास में गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट से सांसद केपी यादव की कहानी वर्षों तक सुनाई जाएगी। केपी यादव जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराया, 2021 में हालात ऐसे बने कि उन्हीं ज्योतिरादित्य सिंधिया को हार पहनाने के लिए दिल्ली जाना पड़ा। किसी पर तंज कसने से ज्यादा यह घटनाक्रम राजनीति में अध्ययन का विषय होना चाहिए। आखिर क्यों केपी यादव उस ऊंचाई पर स्थिर नहीं रह पाए जहां पर जनता ने उन्हें पहुंचा दिया था।
स्थिति को समझने के लिए एक छोटी सी कहानी
एक बार एक लकड़हारे ने राजा की जान बचाई। खुश होकर राजा ने उसे चंदन का जंगल उपहार में दे दिया। लकड़हारा इस बात से खुश था कि अब उसे लकड़ियों के लिए जंगल में नहीं भटकना पड़ेगा। उसने अपने चंदन के जंगल में कोयला बनाने का प्लांट लगा लिया। मनमानी लकड़ियां काटता, उनका कोयला बनाता और बाजार में बेच देता। लकड़हारा बहुत खुश था, क्योंकि उसके जीवन की सारी परेशानियां खत्म हो गई थी। वह कभी जान ही नहीं पाया कि राजा ने उसे जंगल का नहीं बल्कि चंदन के जंगल का स्वामी बना दिया है।
सांसद केपी यादव की कहानी संक्षिप्त में
सन 2018 से पहले तक केपी यादव कट्टर सिंधिया समर्थक थे।
अबकी बार सिंधिया सरकार' यह नारा केपी यादव ने ही दिया था।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विधानसभा का टिकट नहीं दिया तो नाराज हो गए और खुद को गुलामी से आजाद बताते हुए भाजपा में शामिल हो गए।
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया के विरुद्ध मैदान में उतार दिया।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनके प्रचार के लिए भेजा गया।
जनता ने केपी यादव को वह आशीर्वाद दिया, जो ढाई सौ साल के इतिहास में कभी किसी और को नहीं दिया था।
केपी यादव 2019 का लोकसभा चुनाव जीत गए और ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने अपने समर्थक के सामने हार गए।
दोनों के बीच रिश्तो में इतनी कड़वाहट थी कि चुनाव के बाद सांसद केपी यादव के पिता के निधन के अवसर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनके घर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाही परंतु केपी यादव नहीं महाराज के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए।
सन 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल हो जाने के बावजूद केपी यादव ने उनसे दूरी बना कर रखी। कभी किसी मंच पर सिंधिया के साथ नजर नहीं आए।
सन 2021 में हालात बदल गए। ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्रीय मंत्री बने तो फूलों का गुलदस्ता लेकर उनसे मिलने के लिए दिल्ली जा पहुंचे।
MORAL OF THE STORY
राजनीति में कई बार लोगों को जो मिल जाता है, वह उसका पूरा उपयोग नहीं कर पाते। इसलिए बहुत जरूरी है कि जब कोई राजा चंदन का जंगल उपहार में दे दे तो कोयला बनाने का प्लांट लगाने के बजाय विद्वानों से मिलकर चंदन के महत्व को समझना चाहिए और फिर योग्य गुरु से राजनीति की दीक्षा लेकर अपनी योग्यता और क्षमता बढ़ा लेना चाहिए। केपी यादव वर्तमान राजनीति में चमत्कारी बदलाव का स्टेटस सिंबल हो सकते थे परंतु अब केवल एक कहानी बनकर रह गए हैं।
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