रतलाम शहर से 25 किलोमीटर की दूरी पर सातरुंडा फंटा के पास कंवलका माता का दरबार। माता के दरबार के आसपास कुदरत की बेशुमार दौलत चारों और बिखरी हुई है। चारों और पक्षियों का कोलाहल और मोरों की चहलकदमी भक्तों का मन मोह लेती है। सीढ़ियों से मां के दरबार तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। नवरात्रि के अलावा सामान्य दिनों में भी भक्तों की आवाजाही बनी रहती है। कई श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर यहां पहुंचते हैं।
चोरों ने पुजारी के पुत्र की हत्या की, उन्हें तीन पुत्र और हुए
200 साल पहले मंदिर में गुप्त धन की अफवाह सुन चोरी की नियत से घुसे चोरों ने पुजारी पुत्र को फांसी लगाकर मार दिया। पुजारी भुवानी गिरी को मां कंवलका ने वरदान दिया कि तेरे 1 पुत्र के बदले 3 पुत्र दूंगी और प्रथम पुत्र के गले में वहीं फांसी के फंदे का निशान होगा। जब भुवान गिरी के यहां प्रथम पुत्र हुआ तो उसके गले में फांसी के फंदे का निशान मिला। भुवानी गिरी ने प्रथम पुत्र प्रताप गिरी और दो छोटे भाई शंकर गिरी व शिव गिरी कुल 3 तीन पुत्र के वंशज मां कंवलका की सेवा पूजा कर रहे हैं। वर्तमान में रमेश गिरी गोस्वामी व परिवारजन मां की पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
मन्नत के लिए गोबर से उल्टा स्वास्तिक बनाती हैं महिलाएं
कहा जाता है कि यहां मन्नत मांगने से संतान प्राप्ति होती हैं। महिलाएं मंदिर के पश्चिम भाग में गोबर से उल्टा स्वास्तिक बनाती हैं और मनंत पुरी होने पर कुमकुम का सीधा स्वास्तिक बनाकर बड़ के पेड़ पर इच्छानुसार लकड़ी, लोहे, स्टील चांदी का झुला चढ़ाती हैं। हर साल दोनों नवरात्रि में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती हैं।
महाबलि भीम ने माता की सातरुंडा (पहाड़ी) बनाईं हैं
इस मंदिर का कोई प्रमाणित शिलालेख नहीं है। किवदंती है कि पांडव यहां आए थे। पांडवों की गायें चरती हुई गुम हो गई। भीम ने उन्हें खोजने के लिए 6 छोटे-छोटे रुंडे (पहाड़ी) बनाई थी। तब भी गायें नहीं दिखी तो एक मुठ्ठी और मिट्टी डालकर बड़ी पहाड़ी बनाई और उस पर चढ़कर देखा तो उन्हें मांडव में गायें दिखाई दी। गायों को रोकने भीम ने वहीं से पत्थर का लाट फेंक, जो आज भी मांडव में भीम लाट के नाम से प्रसिद्ध है। छोटे-छोटे रूंडे होने क्षेत्र को सातरुंडा कहा जाता है। अन्य पहाडिय़ों पर मिट्टी, मोरम आदि खुदाई होने से खत्म होने की कगार पर है।