जब कोई व्यक्ति परिशान्ति कायम नहीं रखता है तब कार्यपालक मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति से परिशान्ति कायम रखने के लिए एक निश्चित परिसीमा तक जमानत बंधपत्र ले सकता है। अगर बंधपत्र देने वाले व्यक्ति को लगता है कि मजिस्ट्रेट की जाँच या जो बंधपत्र उससे लिया गया है वह वैध नहीं है और वह कोई ऐसा काम भी नहीं करता है जिससे किसी भी प्रकार की कोई लोकशान्ति भंग होती है तब क्या ऐसा बंधपत्र भंग हो सकता है जानिए आज के लेख में महत्वपूर्ण जानकारी।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 123 की परिभाषा:-(सरल शब्दों में)
अगर किसी व्यक्ति को परिशान्ति कायम रखने के लिए बंधपत्र देने को बोला गया था और वह व्यक्ति बंधपत्र देने में असफल हो जाता है तब उसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट के आदेश से कारावासित किया जाता है तब जिला मजिस्ट्रेट या अन्य मामलों में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट शर्तो के अनुसार ऐसे व्यक्ति को मुक्त कर सकता है।
लेकिन अगर कोई भी जिला मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट ने किसी व्यक्ति को शर्तो के अनुसार मुक्त कर दिया था अगर उनके साथ पर कोई नया मजिस्ट्रेट आता है और उसे लगता है कि जो शर्ते उपर्युक्त मजिस्ट्रेट ने दी थी व्यक्ति द्वारा उसका पालन नहीं किया गया है तब वर्तमान जिला मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ऐसे आदेश को रद्द कर देगा।
जब जिला मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा आदेश रद्द कर दिया जाता है तब पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है एवं तुरंत मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करेगी।
इस धारा के अंतगर्त राज्य सरकार को भी शक्ति दी गई है कि वह भी अपनी शर्तों के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कारावास से मुक्त करवा सकती है।
इस धारा के अंतर्गत अगर किसी जमानतदार को कुछ समय बाद अगर लगता है कि उसके द्वारा गलत व्यक्ति की जमानत ले ली गई है तब वह मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन देकर अपनी ग्यारंटी वापस ले सकता है।
उच्च न्यायालय एवं सत्र न्यायालय द्वारा कार्यवाही
इस धारा के अनुसार अगर उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय को लगता कि कार्यपालक मजिस्ट्रेट या जिला मजिस्ट्रेट या अन्य मामलों में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा ली गई प्रतिभूति या व्यक्ति का उन्मोचन(रिहाई) सही नहीं है तब न्यायालय ऐसे सभी आदेश को रद्द करने की शक्ति रखता है। एवं जमानतदार की संख्या कम करने जमानत की राशि कम करने की शक्ति भी न्यायालय को प्राप्त है।
अगर न्यायालय को लगता है कि व्यक्ति परिशान्ति कायम रखता है, एवं ऐसे व्यक्ति को कार्यपालक मजिस्ट्रेट, जिला मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट करावासित करके रखता है तब उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय ऐसे व्यक्ति को मुक्त करने के आदेश दे सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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