भरण-पोषण भत्ते की राशि मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित की जाती है, जो नियमित रूप से आश्रितों को प्राप्त होती रहती है। वर्तमान समय में काफी कुछ बदल रहा है। महंगाई का स्तर भी और लोगों का रोजगार भी। प्रश्न यह है कि यदि महंगाई बढ़ जाती है तो क्या भरण पोषण भत्ते में भी इंक्रीमेंट लगता है और दूसरा प्रश्न यह है कि यदि भरण-पोषण बच्चे का वहन करने वाला व्यक्ति बेरोजगार हो जाए, तो क्या ऐसी स्थिति में भी उसे भरण-पोषण भत्ते का भुगतान करना पड़ेगा। या फिर उसे निलंबित, निर्धारित से कम अथवा रद्द किया जा सकता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 127 की परिभाषा:-
अगर धारा 125 के अंतिम दिए गए आदेश के कारण कोई व्यक्ति मासिक भरण-पोषण भत्ता या अंतरिम भत्ता दे रहा है, एवं उसकी आर्थिक स्थिति में परिवर्तन हो जाए अर्थात किसी कारण से बेरोजगार हो जाए, सैलरी या व्यापार में कमी आ जाए या नौकरी पैसो में बढ़ोतरी (वृद्धि) हो जाए या व्यापार में बहुत ज्यादा मुनाफा होने लगे। तब मजिस्ट्रेट इस धारा के अंतर्गत परिस्थितियों को देखते ही भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण के आदेश में परिवर्तन कर सकता है।
भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण के आदेश का रद्द किया जाना
1. अगर पत्नी विवाह-विच्छेद(तलाक) के बाद भरण-पोषण ले रही है। तब उस तारीख को भरण-पोषण का आदेश रद्द हो जाएगा जब वह पुनर्विवाह कर लेगी।
2. अगर कोई पत्नी किसी विधि या रीति के अनुसार अपने पति से भरण-पोषण की राशि एक मुश्त ले लेती है तब।
3. अगर कोई पत्नी तलाक के बाद भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण ले रही है और वह अपनी मर्जी से भरण-पोषण भत्ता लेना बंद कर दे तब मजिस्ट्रेट द्वारा आदेश रद्द कर दिया जाएगा।
अगर मजिस्ट्रेट द्वारा भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण का आदेश ऐसा दिया गया था कि वह स्त्री के दहेज की रकम देगा और व्यक्ति नहीं देता है तब इस धारा के अंतर्गत वसूली(नीलामी) की जाएगी, तब प्राप्त रकम की जो भी राशि पत्नी की होगी न्यायालय पत्नी को देगा। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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