भोपाल। सरकार से सवाल तो सभी करते हैं परंतु जब सक्षम व्यक्ति सवाल करता है तो हालात बदल जाते हैं। लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता ने सवाल किया तो सरकार को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में से उस धारा को हटाना पड़ा जिसके माध्यम से भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने का प्रावधान कर लिया गया था।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17A का विवाद
मामला भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17A का है। राज्य सरकार ने 26 दिसंबर 2020 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-17 में 17-ए जोड़ दी थी। इसके तहत लोकायुक्त और EOW समेत अन्य जांच एजेंसियों को सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत प्राप्त होने के बाद जांच एवं पूछताछ से पहले विभाग से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया था। कुल मिलाकर लोकायुक्त और EOW की स्वतंत्रता छीनकर दोनों एजेंसियों को विभागीय प्रमुखों के अधीन कर दिया था।
जस्टिस एनके गुप्ता के नोटिस का जवाब नहीं दे पाए, विवादित धारा हटा दी
लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता ने सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार और प्रमुख सचिव (कार्मिक) दीप्ति गौड़ मुखर्जी को नोटिस दिया था। पूछा था कि एक्ट में बदलाव से पहले अनुमति क्यों नहीं ली गई? अफसरों को 29 जुलाई को जवाब पेश करना था, लेकिन इसके एक दिन पहले ही राज्य शासन ने एक्ट में जोड़ी गई धारा (17A) हटा दी है। इस धारा के तहत बने उस नियम को सरकार हटा रही है, जिसमें लोकायुक्त-EOW को जांच के लिए विभाग की अनुमति लेनी पड़ती थी। राज्य सरकार ने इसके आदेश जारी कर दिए हैं।
भ्रष्टाचार के मामलों में पहले क्या होता था अब क्या होगा
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17A के पहले शिकायत प्राप्त होने पर लोकायुक्त अथवा और EOW भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ जांच करती थी स्वतंत्र रूप से जांच करती थी एवं शिकायत सही पाए जाने पर FIR दर्ज की जाती थी। विवादित धारा के खत्म हो जाने के बाद एक बार फिर एजेंसियां इसी प्रकार काम कर पाएंगे।
लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता ने क्या कार्रवाई की
एक्ट में बदलाव को लेकर लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता ने सरकार से पूछा था कि बदलाव से पहले अनुमति क्यों नहीं ली गई? इसे लेकर उन्होंने 5 जुलाई तब जवाब मांगा था। सरकार की ओर से इसकी वजह नहीं बताई गई। इस पर जस्टिस गुप्ता ने नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार और प्रमुख सचिव दीप्ति गौड़ मुखर्जी को नोटिस देकर 29 जुलाई को पेश होने कहा था। इससे पहले ही सरकार ने एक्ट से धारा 17A को हटा दी।
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