जबलपुर। Madhya Pradesh Medical Science University, Jabalpur के सारे सिस्टम को कंट्रोल करती आ रही भोपाल वाली मैडम किसी को भी बचा नहीं पाई। परीक्षा घोटाले में सबसे विवादित एग्जाम कंट्रोलर डॉ वृंदा सक्सेना एवं उप कुलसचिव का अतिरिक्त प्रभार डॉ तृप्ति गुप्ता की प्रतिनियुक्ति समाप्त कर दी गई है। गोपनीय विभाग के क्लर्क नीलेश जायसवाल को सस्पेंड कर दिया गया है और परीक्षा घोटाले में नियम विरुद्ध आदेशों का पालन करने वाली कंपनी माइंडलाॅजिक्स इंफ्राटेक को टर्मिनेट कर दिया गया है।
भोपाल वाली मैडम ने वृंदा सक्सेना को कुलपति की कार्रवाई से बचाया था
सोमवार को मेडिकल यूनिवर्सिटी में परीक्षा गड़बड़ियों को लेकर की गई कार्रवाई के साथ प्रशासनिक प्रभार में भी बदलाव किया गया। एग्जाम कंट्रोलर डॉक्टर वृंदा सक्सेना को हटाए जाने के बाद उप कुलसचिव प्रो. वीवी सिंह को परीक्षा नियंत्रक का प्रभार सौंपा गया है। कुछ दिन पहले ही कुलपति डॉक्टर टीएन दुबे ने परीक्षा नियंत्रक के पर कतरते हुए प्रो. वीवी सिंह को परीक्षा एवं गोपनीय विभाग में अहम जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन बाद में अपना आदेश स्थगित करना पड़ा था। सोमवार को ही प्रक्रिया के दौरान विवि में उपकुलसचिव (अतिरिक्त प्रभार) डॉ. तृप्ति गुप्ता की प्रतिनियुक्ति पर ली गई सेवा भी चिकित्सा शिक्षा विभाग को वापस कर दी गई है।
MPMSU SCAM- क्या-क्या गड़बड़ियां की गई
मेडिकल विवि में रिजल्ट बनाने वाली कंपनी माइंडलॉजिक्स इंफ्राटेक ने सॉफ्टवेयर में बदलाव कर एग्जाम कंट्रोलर डॉक्टर वृंदा सक्सेना और गापेनीय विभाग के बाबू नीलेश जायसवाल के निजी ईमेल अंक भेजे थे। उनके कहने पर छात्रों के अंक में बदलाव किए गए। कोविड के चलते एग्जाम कंट्रोलर अवकाश पर रहीं, तब भी उनके निजी मेल पर परीक्षा परिणाम भेजे गए और उसमें बदलाव किए गए। कई ऐसे छात्रों को पास कर दिए, जो फेल थे। वहीं परीक्षा में न शामिल होने वाले भी कुछ छात्र को पास कर दिए गए।
MPMSU SCAM का खुलासा कैसे हुआ
अप्रैल में कोरोना संक्रमित होने पर प्रभारी एग्जाम कंट्रोलर डॉ. वृंदा सक्सेना अवकाश पर थीं। तब अन्य अधिकारी को परीक्षा नियंत्रक का प्रभार सौंपा गया, लेकिन अवकाश पर रहते हुए परीक्षा नियंत्रक ने डेंटल और नर्सिंग पाठ्क्रम के प्रेक्टिकल परीक्षा के अंकों में बदलाव के लिए माइंडलॉजिक्स कंपनी को ई-मेल किया। यही नंबर कंपनी के असिस्टेंट मैनेजर सुधीर शर्मा ने पोर्टल में दर्ज किए।
अंकों में परिवर्तन से पूर्व कंपनी ने न तो तत्कालीन प्रभारी परीक्षा नियंत्रक और न ही कुलपति से अनुमोदन प्राप्त किया। इसी शिकायत पर कुलसचिव डॉक्टर जेके गुप्ता की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति ने जांच की तो निजी कंपनी की परीक्षा परिणाम की प्रक्रिया में कई गड़बड़ी उजागर हुई।
RGPV की स्पेशल टीम ने टेक्निकल एविडेंस जुटाए
इस मामले में गठित जांच समिति ने माइंडलॉजिक्स कंपनी के सिस्टम की जांच के लिए RGPV- राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से 3 आईटी विशेषज्ञ बुलवाए। इन विशेषज्ञों को जांच में सहयोग के लिए परीक्षा नियंत्रक डॉ. वृंदा सक्सेना को निर्देश दिए गए, लेकिन वे सरकारी कार्य का हवाला देकर भोपाल चली गईं। जांच समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि नियंत्रक ने आईटी विशेषज्ञों को कंपनी से आवश्यक जानकारी उपलब्ध नहीं कराई और न ही अपना प्रभार किसी को सौंपा।
चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने दिए थे जांच के निर्देश
छात्रनेता अंशुल सिंह, शुभम, संदेश, हीरेंद्र सहित अन्य ने इस मामले की चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग से मिलकर व्यापम की तर्ज पर परीक्षा घोटाला का आरोप लगाया था। आरोपों में कहा गया कि एमयू से परीक्षा को लेकर अनुबंधित कंपनी माइंडलॉजिक्स कंपनी ने पास-फेल का खेल रचा है।
आश्चर्यजनक तरीके से उपस्थित छात्र फेल और अनुपस्थित पास हो गए। मार्क्स एंट्री पोर्टल में नंबर में भी फेरबदल किया गया। इस पर मंत्री सारंग ने दो जून को जांच के निर्देश दिए थे। मामले में विवि के कुलसचिव डॉक्टर जेके गुप्ता, वित्त नियंत्रक आरएस डेकाटे और लेखाधिकारी राकेश चौधरी के साथ भोपाल से तीन तकनीकी विशेषज्ञों को जांच समिति में नामित किया गया था।
रिपोर्ट में इन बिंदुओं पर धांधली की हुई थी पुष्टि
जांच के दौरान सरकारी कार्य पर भोपाल जाने का आदेश परीक्षा नियंत्रक ने समिति के समाने पेश नहीं किया।
कॉलेजों के साथ साठगांठ कर अंकाें में फेरबदल की मौखिक शिकायत समिति को मिली है।
परीक्षा परिणाम जारी होने से पहले ही एक कर्मी के पास रिजल्ट का ब्योरा आने से गोपनीयता भंग हुई।
कर्मचारी के खिलाफ एक पेमेंट ऐप पर छात्रों से रुपए मांगने की मौखिक शिकायत समिति को मिली।
परीक्षा विभाग के एक आउटसोर्स कर्मी के खाते में ई-वॉलेट के माध्यम से पैसे भेजे जाने की शिकायत मिली।
MP की मेडिकल यूनिवर्सिटी में खेला:एग्जाम कंट्रोलर को हटाकर 24 घंटे में फिर बहाल किया, भोपाल से फोन आने पर कुलपति ने बदला आदेश।
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