शिक्षा कर्मी कोर्ट प्रकरणों में शैक्षणिक सेवा 2018 के भर्ती नियम, पुरानी पेंशन के दावे को पूर्णतः समाप्त करते हैं। भर्ती नियम, तत्पश्चात सेवा शर्तों के कुछ अंश पुरानी पेंशन एवं वरिष्ठता के शिक्षा कर्मियों के दावे को समाप्त कर उपरोक्त लाभ से वंचित करते हैं। वर्तमान परिस्थितियों में कुछ प्रश्न उद्भूत हुए हैं कि आखिर हाई कोर्ट में युगल खंड पीठ में क्यों प्रकरण दायर किये गए हैं। शिक्षा कर्मी साथी ध्यान पूर्वक निम्नलिखित कारणों का अवलोकन करें:-
1 भर्ती नियम एवम सेवा शर्तें, शिक्षा कर्मी की सम्पूर्ण वरिष्ठता को समाप्त करते हैं। दूसरे शब्दों में भर्ती नियम शिक्षा कर्मी की वरिष्ठता को बाधित एवं शून्य घोषित करते हैं। राज्य शासन, भर्ती नियमों एवं सेवा शर्तों के अनुपालन में शिक्षा कर्मियों की पूर्व की सेवाओं को समाप्त कर उन्हें, वर्ष 1998 से किसी भी प्रकार की सेवा में नही मानता है।
2) मूलतः पुरानी पेन्शन एवं वरिष्ठता के विवाद की उत्पत्ति भर्ती नियमो एवं सेवा शर्तों के कुछ प्रावधानों से हुई है। विकल्प या वचनपत्र भर्ती नियमों का हिस्सा हैं। उनके द्वारा कर्मचारी पुराने लाभों एवं योजनाओं का त्याग कर चुके हैं। अपितु, यह बाध्यकारी परिस्थितियों में हुआ है। जिनकी नियुक्ति नहीं हुई है उन्हें भी विपरीत प्रावधानों के अस्तित्व मे रहते हुए नियुक्ति हेतु वचनपत्र देने होंगे।
3) भर्ती नियम या उसके कुछ विपरीत प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को हाई कोर्ट के नियमानुसार, मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली युगल पीठ सुनती है। एकल पीठ या सिंगल बेंच को भर्ती नियमों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका सुनने का अधिकार नही है। यह युगल पीठ या डबल बेंच ही कर सकती है।
4) पुरानीं पेंशन को समाप्त कर, नवीन पेंशन योजना योजना मध्यप्रदेश में वर्ष 2005 से लागू है। यदि भर्ती नियमों एवँ उसके अनुपालन में जारी सेवा शर्तो का पालन होता है, जिसमे वरिष्ठता शून्य कर दी गई है, तब स्वाभाविक एवं तकनीकी रूप से नवीन पेंशन की परीधि में , शिक्षा कर्मी आते हैं। वरिष्ठता प्राप्ति स्थिति में पुरानी पेंशन का दावा हो सकता है।
5) शिक्षा कर्मियों की वरिष्ठता किसी शासकीय आदेश समाप्त नही हुई है, अपितु संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक से प्राप्त शक्तियों के आधार पर, भर्ती नियम बनाकर वरिष्ठता खत्म की गई है। पुरानी पेंशन के मार्ग में सबसे बडी बाधा, भर्ती नियम एवं सेवा शर्तों के कुछ अंश हैं जो वरिष्ठता समाप्त करते हैं।
6) पुरानी पेंशन की मांग करने वाली याचिकाओ , जो युगल पीठ मे विचाराधीन है ,में यह स्थापित करने का प्रयास किया गया है की शिक्षा कर्मी राज्य शासन के अधीन कर्मचारी , कई तकनीकी आधारो के कारण, वर्ष 1998 से ही रहे हैं। याचिकाओं मे विस्तृत उल्लेख है।
7) भर्ती नियम एवं वचनपत्र और विकल्पपत्र की वैधता को चुनौती दिए बिना एवम पूर्व की सेवाओँ की गणना किये बिना पुरानी पेंशन कभी प्राप्त नही हो सकती है, चूंकि भर्ती नियम एवं सेवा शर्तों के कुछ हिस्से शिक्षा कर्मियों को सीधे नवीन पेन्शन के दायरे में लाते हैं अतः उन्हें हाई कोर्ट में अल्ट्रा viries ( सरकार के असंवैधानिक या मनमाने या अधिकार के बिना किये गए कार्य या नियम) के रूप में चुनौती दी देकर पुरानी सेवाओ की गणना कर पुरानी पेंशन की मांग की है एवं भर्ती नियमों के कुछ प्रावधानों को निरस्त करने की मांग की गई है। वचनपत्र की वैधता पर विशेष प्रहार कर बताया गया गया कि यह कमजोर एवं शक्तिशाली के बीच सौदा है अतः असंवैधानिक है। यह मूलतः सर्विस मैटर ही है, जिसको सुनने का अधिकार मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली युगल पीठ को ही है।
7) सिंगल बेन्च नियमों को अवैध घोषित नही कर सकती है। यह अधिकार मात्र युगल पीठ को ही है। एकल पीठ में शासन भर्ती नियमों के आधार पर याचिका ख़ारिज करने की मांग कर सकता है। परिणाम विपरीत हो सकते हैं।
निष्कर्ष- शिक्षा कर्मियो की पुरानी पेंशन का केस अन्य प्रकरणों की भांति एक प्रकरण है। परिणाम के पूर्व किसी भी प्रकार का विजय या पराजय का दावा उचित नही है। अपितु, हम मजबूत पक्ष के साथ लड़ रहे हैं। सफलता की पूरी उम्मीद है।
विश्लेषण अधिवक्ता अमित चतुर्वेदी उच्च न्यायालय जबलपुर एवम अन्य वकीलो से चर्चा के पश्चात किया गया है अपितु कोई भी विधिक राय अपने आप मे परिपूर्ण नही होती है। ✒ लेखक महेंद्र पांडेय, शिक्षक कांग्रेस के प्रदेश महासचिव भी हैं।
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