उज्जैन। मध्य प्रदेश के पवित्र नगर उज्जैन में खुदाई के दौरान नर कंकाल मिल रहे हैं। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि यह नर कंकाल साधु संतों के हो सकते हैं जो मंदिर के अग्रभाग में रहा करते थे। उल्लेखनीय है कि सन 1235 में मुगल हत्यारे बादशाह शमशुद्दीन इल्तुतमिश ने उज्जैन में भारी नरसंहार करवाया था। इसके बावजूद वह महाकाल के ज्योतिर्लिंग को नुकसान नहीं पहुंचा पाया था।
2 महीने पहले खुदाई में 1000 साल पुराना मंदिर मिला था
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत महाकाल मंदिर विस्तारीकरण किया जा रहा है। मई माह से हुई खुदाई की शुरुआत में पहले छोटी-छोटी मूर्तियां और कुछ दीवारें मिलीं। पता चला, ये मूर्तियां अति प्राचीन हैं, तो कलेक्टर ने भोपाल पुरातत्व विभाग की टीम को बुलवाया। उन्हीं की देखरेख में खुदाई करवाई गई। धीरे-धीरे खुदाई में परमार कालीन समय में बनवाई गई अलग-अलग मूर्तियां और करीब 1000 वर्ष पुराना मंदिर का ढांचा मिला।
शमशुद्दीन इल्तमिश ने उज्जैन को तबाह कर दिया था
प्राचीन काल में भारत वर्ष में जो 16 जनपद थीं उनमें से एक अवंतिका भी थी जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी। चंद्रप्रद्योत नामक सम्राट से उज्जैन प्रशासन व्यवस्था के प्रमाण मिलते हैं। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पोते सम्राट अशोक उज्जैन के राज्यपाल थे। इनके बाद उज्जैन के वीर सम्राट विक्रमादित्य का ऐतिहासिक शासनकाल चला। कई उतार-चढ़ाव के बाद परमार राजवंश ने यहां लंबे समय तक शासन किया। चौहान और तोमर राजवंश का भी शासन रहा। सन 1235 में दिल्ली के बादशाह शमशुद्दीन इल्तुतमिश अपनी सेना लेकर एक क्रूर हत्यारे और लुटेरे के शक्ल में यहां आया। उसने उज्जैन को तबाह कर दिया, कई दिनों तक नरसंहार चलता रहा। इसके बाद उज्जैन की सांस्कृतिक पहचान मिटाने के लिए काम किया जाता रहा।
500 साल बाद बाजीराव पेशवा ने उज्जैन का वैभव लौटाया
तब से लेकर बाजीराव पेशवा के आने तक उज्जैन मुगलों की कब्जे में रहा सन 1737 में बाजीराव पेशवा ने अपने साथी राणोजी सिंधिया को साहू जी महाराज का प्रतिनिधि बनाकर नियुक्त किया। साहू जी महाराज की स्वीकृति एवं बाजीराव पेशवा की प्रबल इच्छा के कारण राणोजी सिंधिया की देखरेख में 500 साल बाद उज्जैन में फिर से भारतीय संस्कृति और धर्म स्थलों के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई।
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