भोपाल। एक युवती एवं उसकी मां की गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तारी करने के मामले में कोर्ट ने भोपाल पुलिस की महिला आरक्षक इरशाद परवीन, आरक्षक सौरव भट्ट और आरक्षक इंद्रपाल को जेल भेज दिया है। इस मामले के चौथे आरोपी ASP दीपक ठाकुर (जो घटना के समय डीएसपी साइबर सेल थे) ने कोर्ट में मेडिकल लगाया था, कोर्ट ने उन्हें 24 घंटे के भीतर प्रस्तुत होने के लिए कहा है। एसपी ने बताया कि मामले में वर्ष 2015 में लोकायुक्त पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू की थी। मंगलवार को चालान पेश किया।
2012 में मां-बेटी को किया था गिरफ्तार
कंप्लेंट एवं इन्वेस्टिगेशन के अनुसार रिनी जौहर और उनकी मां गुलशन जौहर मूलत: पुणे महाराष्ट्र की रहने वाली हैं। 27 नवंबर, 2012 को पुणे स्थित उनके घर से मध्यप्रदेश सायबल पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था। इन दोनों पर आरोप लगाया गया था कि कैमरों और लैपटॉप की खरीदारी में हुए 10,500 अमेरिकी डॉलर के लेन-देन में उन्होंने घोखाधड़ी की है। पुलिस ने दोनों के खिलाफ इंडियन पीनल कोड और आईटी एक्ट के तहत मामले दर्ज किए थे। इस प्रकरण में फरियादी विक्रम राजपूत नाम का एक व्यक्ति है।
मध्य प्रदेश पुलिस की टीम ने क्या गलती की
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में दोनों महिलाओं का कहना था कि गिरफ्तारी के बाद उन्हें ट्रेन के अनारक्षित डिब्बे में लाया गया था। गुलशन जौहर को ट्रेन के फर्श पर सोने पर मजबूर होना पड़ा। वह भी बिना पानी और खाने के रहने पड़ा। पुलिसकर्मियों ने पुणे में बिना मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए भोपाल लाया गया था। जबकि नियम अनुसार गिरफ्तारी के तत्काल बाद उन्हें स्थानीय न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए था।
सुप्रीम कोर्ट ने लताड़ लगाते हुए मुकदमा दर्ज किया था
खुद के साथ हुए जुल्म के खिलाफ मां-बेटी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। जून 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को जमकर लताड़ लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे को निरस्त कर दिया था, बल्कि राज्य सरकार को उन दोनों को 10 लाख रुपए मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि स्वतंत्रता की अपनी पवित्रता होती है। कोर्ट ने कहा था कि इन दोनों के खिलाफ मजिस्ट्रेट की अदालत में चल रहे मुकदमे में भारतीय दंड संहिता की धारा-420 (धोखाधड़ी) के अवयव का अभाव है, लिहाजा मुकदमे को निरस्त किया जाता है।
गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तारी की गई, मानहानि हुई
कोर्ट ने कहा था कि रिपोर्ट से यह साफ है कि याचिकाकर्ता दोनों महिलाओं को गिरफ्तार करने में सीआरपीसी के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया। पीठ ने कहा था कि दोनों की गैरकानूनी तरीके से हुई गिरफ्तारी से याचिकाकर्ताओं के प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
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