लोन चाहे बैंक से लिया हो या फिर किसी रिश्तेदार से, दोनों ही परिस्थितियों में कर्ज माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति उधार लेकर नियत समय पर पैसा वापस नहीं करता तो उसके खिलाफ सिविल न्यायालय में वाद दायर किया जाता है। न्यायालय द्वारा पैसा वापसी के लिए डिक्री जारी की जाती है लेकिन यदि इसके बाद भी कर्जदार व्यक्ति पैसा नहीं चुकाता तब उसे सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत जेल भेजा जा सकता है परंतु इसके कुछ नियम निर्धारित हैं।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा-58 की परिभाषा:-
1. अगर किसी व्यक्ति की भुगतान की रकम 5000 (पाँच हजार) रुपए से अधिक है तब उसे तीन माह की अवधि तक जेल में रखा जाएगा।
2. भुगतान की रकम दो हजार से अधिक लेकिन पाँच हज़ार से कम है तब उसे 6 सप्ताह की अवधि तक जेल में रखा जाएगा।
【अगर भुगतान की रकम दो हजार से कम की है तब ऐसे व्यक्ति को जेल में बंदी बनाकर रखने के लिए सिविल न्यायालय द्वारा कोई आदेश नहीं दिया जाएगा।】
व्यक्ति को कब जेल में बंद करने से पहले छोड़ दिया जाएगा जानिए:-
1. डिफॉल्टर व्यक्ति जेल में पहुँचने के बाद जेल अधीक्षक को कर्ज का भुगतान कर दे तब।
2. या आदेश के बाद तुरंत बाद उस रकम को चुका देता है तब।
3. या डिक्रीधारी की प्रार्थना पर अर्थात शिकायतकर्ता के अनुरोध पर व्यक्ति को जेल में बंदी बनाकर नहीं रखा जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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