लोन बैंक से लिया जाए, किसी संस्था से अथवा मित्र और रिश्तेदार से, वसूली के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत कार्रवाई होती है। इस तरह की कार्यवाही में डिफाल्टर को जेल भेजने के अलावा उसकी प्रॉपर्टी को जप्त करने, कुर्क करके नीलाम करने का प्रावधान भी है, परंतु इसकी सीमाएं भी निर्धारित हैं। जैसे कर्मचारी का वेतन जब किया जा सकता है परंतु रिटायर्ड कर्मचारी की पेंशन जब तक नहीं की जा सकती। आइए पढ़ते हैं:-
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 60 की परिभाषा (सरल शब्दों में):-
अगर व्यक्ति निर्णीत-ऋणी (डिफॉल्टर) के विरुद्ध सिविल न्यायालय द्वारा संपत्ति कुर्क या बिक्री की डिक्री पारित हैं उनकी जिन संपत्तियों को कुर्क या नीलाम किया जा सकता है वो:-
भूमि, मकान, धन, बैंक एफडी, चेक, विनिमय पत्र (हस्ताक्षर वचन पत्र), हुंडी (आपसी चेक), शासकीय जमानत, धन का बंधपत्र, अन्य जमानत, समस्त चल, अचल संपत्ति जो डिफॉल्टर व्यक्ति की है, व्यक्ति को मिलने वाला वेतन (शर्तो के अनुसार) आदि संपत्तियां जब्त या नीलाम की जा सकती है।
• डिफॉल्टर व्यक्ति कि जो संपत्ति कुर्क या नीलाम नहीं कि जा सकती है वह हैं:-
उसकी पत्नी या उसकी बच्चों के पहनने के आवश्यक वस्त्र, खाने के बर्तन, सोने के पलंग, बिस्तर के कपड़े, निजी आभूषण जो स्त्री की धार्मिक प्रथा के अनुसार अलग नहीं कर सकती है जैसे शादी के गहने, सगाई की अंगूठी, मंगलसूत्र आदि। शिल्पी के औजार, खेती के उपकरण, वह सामग्री जो व्यक्ति की जीविकोपार्जन के लिए आवश्यक है, पेशन वाले व्यक्ति की पेंशन या पीएफ आदि, व्यक्ति के आवश्यक दस्तावेज आदि संपत्तियों को कोई भी सिविल न्यायालय जब्ती या नीलामी करने के आदेश नहीं दे सकता है।
एक बार वेतन लेने के बाद दोबारा फिर से कुर्क नहीं किया जा सकता है जानिए -
शेख नूरजहाँ बनाम एम. राजेश्वरी:- उपर्युक्त मामले में आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि जहाँ निर्णीत (डिफॉल्टर) व्यक्ति का वेतन पहले ही 24 माह (दो वर्ष) से अधिक समय तक कुर्की के अधीन रह चुका हो वहाँ पुनः दूसरी बार उसके वेतन को जब्त नहीं किया जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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