किसी भी प्रकार के अपराध की संभावना होने पर कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा वैधानिक आदेश दिए जाने के बाद ही पुलिस कोई कार्रवाई कर सकती है लेकिन दंड प्रक्रिया संहिता का अध्याय 11 पुलिस को यह अधिकार देता है कि कुछ विशेष मामलों में वह कार्यपालक मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना भी अपराध को रोकने के लिए कार्रवाई कर सकती है। पुलिस अधिनियम 1861 की धारा-23 भी पुलिस को इसी प्रकार का अधिकार देती है। आइए जानते हैं:-
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 149 की परिभाषा:-
पुलिस एक्ट 1861 की धारा 23 के अनुसार किसी भी पुलिस थाने के मुख्य अधिकारी को यह अधिकार है कि वह बिना वारण्ट के किसी शराब की दुकान, गेमिंग-हाउस, खुले और अव्यवस्थित चरित्रों के रेस्टोरेंट आदि का निरीक्षण कर सकती है। लेकिन सीआरपीसी की धारा 149 के अनुसार पुलिस कर्मचारियों एवं अधिकारियों को अपराध रोकने की पूरी स्वतंत्रता दी जाती है। इसमें थाने की सीमा निर्धारित नहीं होती। यदि कोई पुलिस अधिकारी देखता है कि उसके सामने कोई अपराध होने जा रहा है, एवं वह संज्ञेय अपराध है। तब पुलिस अधिकारी ऐसे क्राइम को रोकने के लिए कोई भी कदम उठा सकता है। इसके लिए उसे किसी भी प्रकार के आदेश और अधिकार क्षेत्र की आवश्यकता नहीं है।
लेकिन धारा 149 केवल संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए पुलिस को बिना वारंट कार्रवाई करने का अधिकार देती है। असंज्ञेय अपराध के मामले में ऐसा नहीं है।
राज्य बनाम लालचन्द:- मामले में प्रत्यर्थी जो पंजाब राज्य के भारतीय जनसंघ के उपाध्यक्ष थे को हिंदी बचाओ आंदोलन के सम्बंध में संहिता की धारा 149 के अधीन बिना वारण्ट के गिरफ्तार किया गया। उन्हें पुलिस की गाड़ी में एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाया गया। गिरफ्तारी के समय किसी संज्ञेय अपराध के किए जाने की आशंका साबित होना नहीं पाई गई। न्यायालय ने निर्णय किया कि उपरोक्त कार्यवाही धारा- 149 के अधीन नहीं कही जा सकती है एवं यह अवैध थी।
किस मामले में पुलिस किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है
अर्थात पुलिस संज्ञेय अपराध होने की स्थिति में बिना वारण्ट के धारा-149 के अंतर्गत हस्तक्षेप कर सकती है लेकिन असंज्ञेय अपराध के लिए वारण्ट का होना आवश्यक होगा।
:- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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