बाइक, कार, जीप, बस, ट्रक और ट्रैक्टर सभी वाहन है। इंसान हो या सामान। सभी वाहन बोझ उठाते हैं। दौड़ लगाते हैं। जहां तक साइलेंसर की बात है तो उसका संबंध पर्यावरण से होना चाहिए लेकिन हर वाहन में साइलेंसर अलग प्रकार से लगाया जाता है। कार का साइलेंसर पीछे की तरफ होता है, बस और ट्रक का साइड में जबकि ट्रैक्टर का सामने की तरफ होता है। सवाल यह है कि ऐसा क्यों किया जाता है। क्या ऐसा करने से इंजीनियर की कोई पहचान बनती है।
अपन सभी जानते हैं कि बिना जानवर के मदद के, मशीन से चलने वाले पहले वाहन की शुरुआत सन 1769 में हुई थी। सबसे पहले भाप से चलने वाला इंजन बनाया गया और फिर इंजन में विभिन्न प्रकार के ईंधन का उपयोग किया गया। वर्तमान में बैटरी से चलने वाले वाहन बनाए जा रहे हैं। वाहन के निर्माण की प्रक्रिया में साइलेंसर की प्लानिंग बिल्कुल नहीं थी लेकिन जब इंजन की आवाज और उससे निकलने वाले धुएं ने परेशान किया तो इसका समाधान (साइलेंसर) निकाला गया।
अब अपन अपने क्वेश्चन के आंसर पर आते हैं। और इंजीनियरिंग के टिपिकल शब्दों का उपयोग किए बिना सीधे सरल हिंदी में बात करें तो कार का इंजन अच्छी क्वालिटी का होता है। वह इंधन का पूरा उपयोग करता है। इसलिए कम से कम धुआं छोड़ता है। इसलिए उसे पीछे की तरफ कार की बॉडी में छुपा कर लगाया जाता है। ताकि डिजाइन खराब ना हो।
बस और ट्रक का इंजन ज्यादा धुआं छोड़ता है। इसलिए उनका साइलेंसर साइड में होता है ताकि पीछे आने वाले वाहन को धुएं के कारण परेशानी ना हो ट्रैक्टर के मामले में ना तो डिजाइन महत्वपूर्ण होता है और ना ही ट्रैफिक। ट्रैक्टर खेती का उपकरण है। फसल और बीज महत्वपूर्ण होते हैं। यदि साइलेंसर को साइड में अथवा पीछे लगा देंगे तो इससे फसल और बीज प्रभावित होंगे। इसलिए ट्रैक्टर का साइलेंसर ड्राइवर के सामने इतनी ऊंचाई पर लगाया जाता है कि उसका धुआं ट्रैक्टर के ड्राइवर को डिस्टर्ब ना करे। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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