एक पौधा जिसे खाने से महीने भर भूख-प्यास नहीं लगती- GK in Hindi

Bhopal Samachar
बाजार में भूख बढ़ाने वाली हजारों दवाइयां मिलती है परंतु दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अत्यधिक भूख-प्यास के कारण परेशान रहते हैं। कई बार जीवन में (यात्रा, युद्ध, अकाल आदि) ऐसे अवसर आते हैं जब हमारे पास भूख और प्यास को शांत करने के लिए कोई विकल्प नहीं होता। भारत की धरती पर एक पौधा ऐसा पाया जाता है जिसे खाने से अत्यधिक भूख-प्यास लगने की बीमारी से मुक्ति मिल जाती है, मोटापा नहीं बढ़ता और यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसे खा ले तो महीने भर तक उसे भूख प्यास नहीं लगती।

तंडुल की खीर खाने से 1 महीने तक भूख-प्यास नहीं लगती

कौटिल्य के इतिहास में इसका विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। युद्ध के समय इस पौधे के तंडुल से बनी खीर खाई जाती थी ताकि सैनिकों को भूख और प्यास की पीड़ा परेशान ना करें। इस पौधे को संस्कृत में अपामार्ग, हिन्दी में चिरचिटा, लटजीरा और ग्रामीण क्षेत्रों में आंधीझाड़ा कहते हैं। अंग्रेजी में इसे रफ चेफ ट्री नाम से जाना जाता है। यह पौधा 1 से 3 फुट ऊंचा होता है और खेतों के आसपास अथवा ग्रामीण क्षेत्रों में आम रास्तों के किनारे आसानी से दिखाई दे जाता है।

अपामार्ग के ठंठल से दांतों के कीड़े खत्म हो जाते हैं

यह पौधा वर्षा ऋतु के बाद सबसे ज्यादा संख्या में दिखाई देता है। क्योंकि यह बहुत ही उपयोगी पौधा है इसलिए इसे धर्म के साथ संलग्न कर दिया गया है। ऋषिपंचमी ,गणेश पूजा, हरतालिका पूजा, मंगला गौरी पूजा आदि में इसका उपयोग किया जाता है। ऋषि पंचमी के दिन 108 ठंठल की गठरी इसी पौधे की होती है, जैसे पानी में डालकर स्नान किया जाता है। कहते हैं इसकी दातुन करने से 100 वर्ष तक दांतों में कीड़े नहीं लगते।

शरीर की गठान खत्म करने वाली एकमात्र आयुर्वेदिक औषधि

इसके डंठल पानी में डालकर स्नान करने से मस्तिष्क में जमा हुआ कफ निकल जाता है। कीड़े खत्म हो जाते हैं। इसके पत्ते पीसकर लगाने से फोड़े-फुंसी ठीक हो जाते हैं। चमत्कार वाली बात यह है कि शरीर के भीतर की गठान भी ठीक हो जाती है जबकि एलोपैथी में इसके लिए सिर्फ सर्जरी एक उपाय है।

बार-बार भूख लगने की बीमारी का देसी इलाज

इसकी जड़ को पानी में घोलकर पीने से पथरी ठीक हो जाती है। इसके बीज चावल की तरह दिखाई देते हैं जिन्हें इन्हें तंडुल कहा जाता है। जिन लोगों को अत्यधिक भूख-प्यास लगती है, मोटापे से परेशान हैं उन्हें तंडुल की खीर खिलाई जाती है। यह खीर कभी भी स्वस्थ मनुष्य द्वारा नहीं खाई जाती, अन्यथा लगभग 1 महीने तक उनकी भूख-प्यास का एहसास खत्म हो जाता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article

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