Shoelaces को Shoestrings या bootlaces भी कहा जाता है, लेकिन अपन लोग जूते का फीता बोलते हैं। जूते में इसकी अपनी वैल्यू होती है। यदि आप स्पोर्ट्स शूज पहने हुए हैं और आपने फीता नहीं बांधा तो आपको पैदल चलने में परेशानी हो सकती है। अपने सामने सवाल यह है कि जूते के फीते के किनारों पर जो प्लास्टिक अथवा धातु का लॉक लगाया जाता है, उसे क्या कहते हैं।
आपको जानकर अच्छा लगेगा कि जूते के फीते के किनारों पर लगे हुए प्लास्टिक के लॉक को एक खास नाम दिया गया है। इसे एग्लेट (Aglet) कहते हैं। (एग्लेट ( Aglet ) का अर्थ है कोई सुई, पिन जैसी नुकीले चीज़। ) इतिहास की किताब में जूते के फीते की भी अपनी कहानी है। ना केवल इसके महत्व को समझा गया बल्कि जूते के फीते को इतिहासकारों ने भी महत्व दिया और दस्तावेजों में दर्ज किया गया। 12 वीं शताब्दी में पहली बार जूतों में फीते लगाए गए। इस प्रकार दुनिया भर में जूते के फीते की डिमांड शुरू हुई और आज की तारीख में 50% से अधिक जूते पहनने वाले लोग फीते वाले जूते पहनना पसंद करते हैं।
जूतों और फीतों का इतिहास
लगभग 3500 ईसा पूर्व जूतों का अस्तित्व में आना बताया गया है। सबसे पहले अमेरिका में देखा गया। मनुष्य के साथ जूतों का भी विकास होता गया। कहते हैं पहले पैरों में मरे हुए जानवरों के चमड़े को परमानेंट बांध दिया जाता था। अमेरिका में चमड़े से बने जूते पूरी तरीके से खोले और बंद किए जा सकते थे। 12 वीं शताब्दी के मध्य काल में जूतों को बांधने के लिए पहली बार फीते का उपयोग किया गया। इसके दस्तावेज लंदन के म्यूजियम में मौजूद है।
जूतों की कहानी में यह याद रखना भी जरूरी है कि भारत में 18 शताब्दी तक केवल राजा और राज दरबार के पदाधिकारी ही जूते पहनते थे। 19वीं शताब्दी में भी भारत की आधी आबादी को जूते पहनने की अनुमति नहीं थी। भारत देश के स्वतंत्र हो जाने के बावजूद सभी नागरिकों को जूते पहनने की स्वतंत्रता नहीं मिल पाई थी। आज भी भारत के कुछ ग्रामीण इलाकों में, कुछ विशेष प्रकार के लोगों को जूते पहनने की अनुमति नहीं है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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