भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 27 अगस्त 2021 दिन शुक्रवार को शाम 6.50 बजे से शुरू हो रही है। जो अगले दिन यानी 28 अगस्त को रात 8.55 बजे तक रहेगी। अतः हलषष्ठी व्रत एवं पूजन विधान दिनांक 28 अगस्त को होगा। इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए एवं अपनी संतान की रक्षा के लिए व्रत और उपवास करती हैं।
भगवान विष्णु के प्रिय शेषनाग का अवतार हैं बलराम
हलषष्ठी अथवा हरछठ भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण के बड़े भाई भगवान बलराम का जन्म दिवस है। सारे भारत में इसे श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान बलराम, शेषनाग का अवतार हैं जिन्होंने भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार में आने से पहले ही जन्म ले लिया था। भगवान बलराम मल्लयुद्ध में पारंगत थे और गदा शस्त्र के विशेषज्ञ थे परंतु उन्होंने हमेशा हल धारण किया। यानी द्वापर युग में भगवान बलराम सृजन के देवता थे।
इसे चंद्रषष्ठी, बलदेव छठ, रंधन षष्ठी भी कहते हैं
हल धारण करने के कारण भी बलरामजी को हलधर नाम से भी जाना जाता है। भगवान बलराम माता देवकी और वासुदेव की सातवीं संतान हैं। यह पर्व श्रावण पूर्णिमा के 6 दिन बाद विभिन्न नामों के साथ इसे चंद्रषष्ठी, बलदेव छठ, रंधन षष्ठी कहते हैं।
हल के सहयोग से उपजा अन्न नहीं खाते
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है हल। यानि जिस अन्न को हल से नहीं जोता गया हो। इस दिन व्रत के दौरान कोई अनाज नहीं खाया जाता। महुआ की दातुन की जाती है। तालाब में उगने वाली चीजें ही खाई जाती हैं। जैसे तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसाही के चावल। हलषष्ठी व्रत में भैंस का दूध, दही और घी का इस्तेमाल प्रयोग किया जाता है। गाय के किसी भी प्रकार के उत्पाद जैसे दूध, दही, गोबर आदि का उपयोग नहीं किया जाता।
छठ माता का चित्र बनाते हैं
हलषष्ठी पर घर या बाहर दीवाल पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाते हैं। जिसके बाद भगवान गणेश और मां गौरा का पूजन किया जाता है। घर में ही तालाब बनाकर महिलाएं उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं। इसी स्थान पर बैठकर पूजन होता है। जिसमें हल षष्ठी की कथा सुनी जाती हैं।
हलषष्ठी की व्रतकथा
प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।
यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।
वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हलषष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।
उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।
इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।
कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है।
वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए।
ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया।
बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया।