वर्तमान में गोचर के अनुसार धनु, मकर और कुंभ राशिफल शनि की साढ़ेसाती तथा मिथुन और तुला राशि पर शनि की ढैया दशा चल रही है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र में वासुदेव श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मनाया जाता है। जिसे जन्माष्टमी नाम दिया गया है। शनि की दशा से दंडित मनुष्यों के लिए यह सबसे अच्छा अवसर है जब वह शनि देव के दंड से बचने का उपाय कर सकते हैं। शास्त्रों में उल्लेख है कि इस दिन विधि विधान से जन्माष्टमी का व्रत करने, भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक करने एवं श्री कृष्ण स्तुति का पाठ करने से शनिदेव के दंड से मुक्ति प्राप्त होती है।
वासुदेव श्री कृष्ण और शनिदेव का संबंध
भगवान श्री कृष्ण सबके आराध्य हैं। उनके भक्तों में एक बड़ा नाम शनिदेव का भी है। जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ और नंद गांव में श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मनाया जा रहा था तब, सभी देवी देवता जन्मोत्सव का आनंद लेने एवं भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार के दर्शन करने के लिए पहुंचे। शनि देव, सदा से ही भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की प्रतीक्षा कर रहे थे। उत्साहित शनि देव अपने आराध्य श्री कृष्ण के दर्शन करने के लिए पहुंचे लेकिन माता यशोदा ने शनिदेव के दंड विधान के भय के कारण उन्हें श्री कृष्ण के दर्शन नहीं करने दिए।
इससे निराश होकर शनि देव नजदीक ही स्थित नंदनवन में जाकर तपस्या करने लगे। शनिदेव इस बात से दुखी थे कि उनके कर्तव्य (मनुष्यों को उनके कर्मों का फल प्रदान करना) के कारण लोग उनसे भयभीत हो जाते हैं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कोकिला के रूप में शनिदेव को दर्शन देते हुए प्रसन्नता पूर्वक उद्घोष किया कि आज से इस नंदनवन को लोग कोकिलावन के नाम से जानेंगे। जो कोई मनुष्य यहां आकर शनि देव का पूजन करेगा, उसे पापों से क्षमा प्राप्त होगी और शनिदेव की कृपा से जीवन में सुख एवं सफलताएं प्राप्त होंगी। शनिदेव ने उद्घोष किया कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर जो कोई मनुष्य भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाएगा, वह मेरी कृपा का अधिकारी होगा। उसके पापों को क्षमा किया जाएगा। तभी से शनि की साढ़ेसाती एवं ढैया दशाओं में पीड़ित मनुष्य श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर अपने पापों से मुक्ति के लिए क्षमा याचना करते हैं।
गोपाल स्तुति
नमो विश्वस्वरूपाय विश्वस्थित्यन्तहेतवे।
विश्वेश्वराय विश्वाय गोविन्दाय नमो नमः॥1॥
नमो विज्ञानरूपाय परमानन्दरूपिणे।
कृष्णाय गोपीनाथाय गोविन्दाय नमो नमः॥2॥
नमः कमलनेत्राय नमः कमलमालिने।
नमः कमलनाभाय कमलापतये नमः॥3॥
बर्हापीडाभिरामाय रामायाकुण्ठमेधसे।
रमामानसहंसाय गोविन्दाय नमो नमः॥4॥
कंसवशविनाशाय केशिचाणूरघातिने।
कालिन्दीकूललीलाय लोलकुण्डलधारिणे॥5॥
वृषभध्वज-वन्द्याय पार्थसारथये नमः।
वेणुवादनशीलाय गोपालायाहिमर्दिने॥6॥
बल्लवीवदनाम्भोजमालिने नृत्यशालिने।
नमः प्रणतपालाय श्रीकृष्णाय नमो नमः॥7॥
नमः पापप्रणाशाय गोवर्धनधराय च।
पूतनाजीवितान्ताय तृणावर्तासुहारिणे॥8॥
निष्कलाय विमोहाय शुद्धायाशुद्धवैरिणे।
अद्वितीयाय महते श्रीकृष्णाय नमो नमः॥9॥
प्रसीद परमानन्द प्रसीद परमेश्वर।
आधि-व्याधि-भुजंगेन दष्ट मामुद्धर प्रभो॥10॥
श्रीकृष्ण रुक्मिणीकान्त गोपीजनमनोहर।
संसारसागरे मग्नं मामुद्धर जगद्गुरो॥11॥
केशव क्लेशहरण नारायण जनार्दन।
गोविन्द परमानन्द मां समुद्धर माधव॥12॥
॥ इत्याथर्वणे गोपालतापिन्युपनिषदन्तर्गता गोपालस्तुति संपूर्णम ॥