भोपाल। भोपाल संभाग के संयुक्त संचालक, किसान कल्याण तथा कृषि विकास श्री बी.एल. बिलैया ने सोयाबीन, धान एवं मक्का की फसल करने वाले किसानों के लिए सलाह एवं कीड़ी और बीमारियों से बचाव के लिए उपाय बताए हैं।
सोयाबीन की फसल को कीड़े एवं रोगों से कैसे बचाएं
भोपाल संभाग के संयुक्त संचालक, किसान कल्याण तथा कृषि विकास श्री बी.एल. बिलैया द्वारा बताया गया कि संभाग में 1845.52 हजार हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बोनी की जा चुकी है जिसमें सोयाबीन का 1053.07 हजार हेक्टेयर क्षेत्राच्छादन हुआ है। लगातार वर्षा होने के कारण सोयाबीन फसल को मुख्य रूप से तनामक्खी कीट, चने की इल्ली तथा सेमीलूपर से नुकसान होता है। किसान भाई खेत की सतत देखरेख करते रहें। कीट एवं रोग दिखाई देने पर तुरंत अनुशंसित कीटनाशकों एवं रसायनों का छिडकाव करें। तनामक्खी के नियंत्रण हेतु बीटासाइफ्लूथिन 8.49 प्रतिशत के साथ इमिडाक्लोप्रिड 19.81 प्रतिशत ओ.डी.140 मिली/ एकड़ या लेम्बडासाइलोथ्रिन 9.5 प्रतिशत के साथ थायोमिथाक्सॉम 12.6 प्रतिशत जेड.सी. 80 मिली/ एकड या नोवाल्यूरॉन 5.25 प्रतिशत के साथ ईमामेक्टिन बेन्जोएट 0.9 प्रतिशत एस.सी. 250 मिली/ एकड़ या फ्लूबेन्डामाईड 39.35 प्रतिशत एस.सी. 60 मिली/ एकड़ या क्लोरएन्ट्रानिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत एस.सी. 40 मिली/ एकड़ का छिडकाव करें।
श्री बिलैया ने बताया कि पीला मोजेक रोग एवं सोयाबीन मोजेक के नियंत्रण के लिए सलाह है कि तत्काल रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर निष्कासित करें तथा रोगों का फैलाने वाले वाहक जैसे सफेद मक्खी एवं एफिड की रोकथाम के लिए कीटनाशक थायोमिथाक्सॉम + लेम्बडासाइलोथ्रिन (125 ली./ हे.) या बीटासाइफ्लूथिन + इमिडाक्लोप्रिड (350 ली./ हे.) का छिडकाव करें। सोयाबीन फसल में सेमीलूपर के नियंत्रण के लिए रेनेक्सीपायर 0.10 ली./ हे. या प्रोपेनोफॉस 1.25 ली./ हे.या इन्डोक्साकार्ब 14.50 एस.पी. 0.50 ली./ हे.या रेनेक्सीपायर 20 एस.सी. 0.10 ली./ हे. का छिडकाव करें।
अधिक जानकारी के लिए अपने स्थानीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी अथवा कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से अवश्य संपर्क करें।
किसान भाई धान की रोपाई में देरी ना करें
भोपाल संभाग के संयुक्त संचालक, किसान कल्याण तथा कृषि विकास श्री बी.एल. बिलैया द्वारा बताया गया कि संभाग में 1845.52 हजार हक्टेयर में खरीफ फसलों की बोनी की जा चुकी है जिसमें धान का 373.93 हजार हेक्टेयर क्षेत्राच्छादन हुआ है।
उल्लेखनीय है कि धान की रोपाई का कार्य तेजी से चल रहा है, बारिश देरी से होने के कारण धान की रोपाई समय पर नही हो पायी है, पौध ज्यादा दिनों के हो गये है ऐसे में कृषक रोपाई करते समय पौध की संख्या 2 से 3 रखे। पौधे से पौधे दूरी 15 X15 से.मी. कतार से कतार की दूरी 20X20 से.मी. रखे तथा 3-4 से.मी गहराई पर रोपाई करें। रोपाई के तुरंत पहले पौध के उपरी भाग के 1 इंच सिरे को काटकर अलग कर दें एवं पौध की जड़ों को क्लोरोपायरीफॉस 20ई.सी. (1 मि.ली./ली पानी) अच्छी तरह से डुबाए। रोपाई के लिये खेत को अच्छी तरह समतल कर ले तथा खेत मे 100-130 कि.ग्रा. डी.ए.पी. 70 कि.ग्रा. एम.ओ.पी., 40 कि.ग्रा. यूरिया एवं 25 कि.ग्रा. जिंक प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के समय प्रयोग करें। यूरिया कि 60-80 कि.ग्रा. मात्रा रोपनी के 4-5 सप्ताह तथा 60-80 कि.ग्रा.मात्रा रोपनी के 7-8 सप्ताह बाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत मे प्रयोग करें। रोपाई के बाद खेत मे 4-5 से.मी. का पानी का स्तर बनाए रखे। अच्छी बारिश होने से खेत मे पर्याप्त नमी बनी हुई हैं, जिन किसान भाईयों ने धान की रोपाई का कार्य नहीं किया है वे जल्द से जल्द रोपाई का कार्य कर ले। कम दिनों के रोपे में अच्छा उत्पादन प्राप्त होता हैं।
अधिक जानकारी के लिए अपने स्थानीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी अथवा कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से अवश्य संपर्क करें।
मक्का फसल को फॉल आर्मीवर्म कीट से बचाने के उपाय
भोपाल। भोपाल संभाग के संयुक्त संचालक, किसान कल्याण तथा कृषि विकास श्री बी.एल. बिलैया द्वारा बताया गया कि संभाग में 1845.52 हजार हक्टेयर में खरीफ फसलों की बोनी की जा चुकी है जिसमें का मक्के का 136.14 हजार हेक्टेयर क्षेत्राच्छादन हुआ है।
उल्लेखनीय है कि कृषक बन्धु सतत् मक्के की फसल की देखरेख करते रहें मक्का फसल में फॉल आर्मीवर्म कीट से नुकसान की आशंका रहती है फॉल आर्मीवर्म कीट की इल्ली सबसे पहले मुलायम पत्तियों को क्षति पहुँचाती है पत्तियों पर कटे - फटे गोल से आयताकार छिद्र बने दिखाई देते हैं। समय रहते इस किट का नियंत्रण नहीं किया गया तो यह मक्का फसल को 50-60 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचाते है। फॉल आर्मीवर्म कीट का प्रकोप यदि कम दिखाई दे रहा है ऐसे में नियंत्रण हेतु 5 प्रतिशत नीम बीज कर्नल सत या एजाडिरेक्टिन 1500 पी.पी.एम.का 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। जिन खेतों में संक्रमण 10 प्रतिशत से अधिक है तो बड़े लार्वा के लिये अनुशंसित रसायनिक कीटनाशक स्पाइनटोरम 11.7 प्रतिशत एस.सी. का 0.5 मि.ली. या क्लोरेन्ट्रानिली प्रोएल 18.5 प्रतिशत एस.सी. का 0.4 मि.ली. या थियोमेथोक्जाम 12.6 प्रतिशत + लेम्ब्डा साइहेलोथ्रीन 9.5 प्रतिशत जेड.सी. का 0.25 मि.ली.या इमामेक्टिन बेन्जोएट 5 प्रतिशत एस.सी. का 0.6 ग्राम का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
अधिक जानकारी के लिए अपने स्थानीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी अथवा कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से अवश्य संपर्क करें।
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