शक्ति रावत। दोस्तो, कहानी इस सदी के शुरूआती दस सालों की है। जब हरियाणा के पानीपत में एक बच्चा और उसका पूरा परिवार अपने मोटापे से परेशान थे। मोहल्ले के बच्चे उसके मोटापे का मजाक उड़ाते और अपने साथ खिलाने को भी तैयार नहीं होते। इस समस्या का हल निकालने के लिए इस बच्चे के चाचा ने उसे दौड़ाने के लिए स्टेडियम ले जाने का फैसला किया 13 साल का यह बच्चा वहां जाता तो सही पर दौडऩे में मन नहीं लगता। हां वो वहां पर कुछ बड़े लडक़ों को भाला फेकते हुए बड़े गौर से देखा करता।
7 अगस्त 2021 के दोपहर 12 बजे से पहले नीरज नाम के इस बच्चे को सिर्फ वही लोग जानते थे, जो ऑलंपिक और एथलेटिक्स में रूचि रखते थे लेकिन दोपहर 3 बजे के बाद भारत ही नहीं पूरी दुनिया जान गई कि नीरज चोपड़ा ने भाला फेंककर इतिहास रच दिया है। पानीपत के छोटे से स्टेडियम से लेकर सेना में सूबेदार बनने और उसके बाद खेल मैदानों पर झंड़ा गाडऩे वाले नीरज का सफर भी दूसरों की तरह आसान नहीं है। लेकिन उनके कामयाबी के मंत्र बहुत लोगों के लिए प्रेरणा की तरह हैं।
1- जब कामयाबी के सपने सोने ना दें
ऑलपिंक खत्म होने के एक दिन पहले नीरज ने देश के लिए गोल्ड जीता। इससे एक रात पहले वे करवट बदलते हुए एक ही बात सोच रहे थे, कि कल कुछ भी हो, देश का राष्ट्र गान ऑलपिंक में गूंजना ही चाहिये। उनकी कामयाबी का यह सपना और उत्साह किस कदर था, पूरी दुनिया ने भाला फेंकते समय स्क्रीन पर देखा। किसी भी काम को करने का जुनून ही जीत और हार तय करता है।
2- जब मेहनत के सिवा कुछ और अच्छा ना लगे
कामयाबी एक दिन में नहीं मिलती औरों की तरह यह बात नीरज भी अच्छे से जानते हैं। 7 अगस्त को जो ऐतिहासिक भाला टोक्यो में नीरज ने फेका दरअसल उसकी तैयारी 2010 से शुरू हो चुकी थी। उस एक निर्णायक क्षण में नीरज की 11 सालों की मेहनत थी, बिना रूके बिना थके। मेहनत का कोई विकल्प नहीं। यही एक दिन कामयाबी बनकर बोलती है।
3- जब लगातार काम करके भी थको नहीं
गोल्डमेडलिस्ट होने के साथ नीरज अपने परिवार के एकलौते इंसान हैं, जिन्हें सरकारी नौकरी मिली थी। दरअसल वजन घटाने के लिए स्टेडियम में उतरे नीरज फिर वापस लौटे ही नहीं। आगे ही बढ़ते गए। एथलिटक्स में कड़ी मेहनत और सेना की नौकरी के बीच वे लगातार अपनेआप को तराशते रहे। हर आपको अपने जीवन में थकान या अपने सपने में से किसी एक को चुनना होता है।
4- तो समझो इतिहास रचने वाला है
इतिहास में तीन बड़ी लड़ाईयों के लिए प्रसिद्व पानीपत अब नीरज चौपड़ा के शहर के नाम से भी जाना जा रहा है। दरअसल दुनिया ने जो गोल्ड मेडल उनके गले में 2021 में देखा नीरज ने चार साल पहले 2017 में उसका सपना देखना शुरू कर दिया था। वास्तव में इतिहास तभी रचा जाता है। जब आपकी कोशिशें आपकी मुश्किलांे पर भारी साबित होने लगतीं हैं। -लेखक मोटीवेशनल स्पीकर हैं।