जबलपुर। मध्य प्रदेश की जनता को बिजली उपलब्ध कराने वाली पावर मैनेजमेंट कंपनी और विद्युत वितरण कंपनियों के नियम भी अजीब है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में चोरों ने जो बिजली चोरी की है, जिसे बिजली कंपनी के अधिकारी पकड़ नहीं पाए और भ्रष्ट अधिकारियों ने जो जरूरत से ज्यादा बिजली खरीद ली, जिसे स्टार्ट नहीं किया जा सकता, जो बर्बाद हो गई, इस सब का घाटा 5341.13 करोड़ उन उपभोक्ताओं से वसूला जाएगा जो नियमित रूप से बिजली बिल अदा करते हैं। यानी ईमानदार हैं और नियमों का पालन करते हैं।
26 करोड़ की बिजली खरीदनी थी, 32 करोड़ की खरीद ली
बिजली कंपनियों की ओर से मध्य प्रदेश विद्युत नियामक आयोग में सत्यापन याचिका पेश कर दी है। आयोग ने इस पर 20 अगस्त तक आपत्तियां आमंत्रित की है। 24 अगस्त को जनसुनवाई में आपत्तियों पर सुनवाई करेगी। सत्यापन याचिका में बिजली कंपनियों ने घाटे के दो मुख्य वजह पहला प्रदेश में सरप्लस बिजली और दूसरा बिजली चोरी बताया है। इसका भार आम उपभोक्ताओं को वहन करने को कहा है। टैरिफ आदेश 2019-20 में कंपनियों को 26003.63 करोड़ रुपए की बिजली खरीदनी थी परंतु अधिकारियों ने 32231.42 करोड़ रुपए की बिजली खरीद ली। यानी जनता की अनुमति लिए बिना 6227.79 करोड़ रुपए की अधिक बिजली खरीदी गई।
6227.79 करोड़ की एक्स्ट्रा बिजली खरीदी और पूरी चोरी करवा दी
कंपनियों का रिकॉर्ड बताता है कि वर्ष 2019-20 में कुल 336.6 करोड़ यूनिट अतिरिक्त बिजली खरीदी गई, जिसके लिए 6227.79 करोड़ रुपए खर्च किए गए लेकिन यह बिजली किसानों या व्यापारियों को सप्लाई नहीं की गई बल्कि चोरी हो गई। चोरों को पकड़ा नहीं गया। अधिकारियों का कहना है कि चोरी गई बिजली का पैसा बिजली की कीमत बढ़ाकर ईमानदार उपभोक्ताओं से वसूला जाएगा।
अधिकारियों की लापरवाही से जो बिजली बर्बाद हुई उसका पैसा भी जनता देगी
बिजली सप्लाई के सिस्टम में एक शब्द होता है लाइन लॉस, यानी उत्पादन क्षेत्र से उपभोक्ता के मीटर तक बिजली पहुंचने की प्रक्रिया के दौरान थोड़ी बिजली खत्म हो जाती है। इंजीनियर्स ने निर्धारित किया है कि यह खर्चा 10% से अधिक नहीं होना चाहिए। यदि होता है तो इसके लिए बिजली वितरण कंपनी के अधिकारी एवं कर्मचारी जिम्मेदार होंगे लेकिन लाइन लॉस के नाम पर ज्यादा बिजली का खर्चा बता दिया गया और इसका पैसा भी उपभोक्ताओं से वसूला जाएगा।
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