भोपाल। मध्य प्रदेश के नगरीय निकाय मंत्री भूपेंद्र सिंह के निर्देश पर 3 साल से अधिक समय से प्रतिनियुक्ति पर जमे हुए 800 से ज्यादा अधिकारियों एवं कर्मचारियों की लिस्ट तैयार कर ली गई है। यह सभी कर्मचारी नगरिया निकाय में किसी न किसी पावरफुल पोजीशन पर प्रभारी अधिकारी बनकर बैठे हुए हैं। माना जा रहा है कि इन सभी को इनके मूल विभागों में लौटाया जाएगा क्योंकि नगरीय निकाय में सबसे ज्यादा पॉलिटिक्स यही लोग कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश में प्रतिनियुक्ति पर ही रिटायर होना चाहते हैं कर्मचारी
मध्य प्रदेश में 16 नगर निगम, 98 नगर पालिका एवं 294 नगर परिषद है। इनमें से ज्यादातर नगर निगम एवं नगर पालिकाओं में अन्य विभागों के अधिकारी-कर्मचारी प्रतिनियुक्ति पर जमे हुए हैं। सबसे ज्यादा नगर निगमों में दखल है। कई अफसर तो मलाईदार पदों पर सालों से जमे हैं, जो निगमों से वापस अपने विभागों में लौटना ही नहीं चाह रहे हैं। जबकि नियमानुसार कोई भी कर्मचारी 3 वर्ष से अधिक समय तक किसी अन्य विभाग में प्रतिनियुक्ति पर नहीं रह सकता। उसे अपने मूल विभाग में वापस लौट कर आना ही होता है।
नगरीय निकाय की पावरफुल कुर्सियों पर प्रतिनियुक्ति वाले कर्मचारियों का कब्जा
प्रदेश में ट्रांसफर पर लगे बैन के खुलने के बाद से ही नगरिया निकाय में ऐसे कर्मचारियों की लिस्ट बनना शुरू हो गई थी, जो अब अंतिम दौर में बताई जा रही है। बताया जाता है कि भोपाल नगर निगम में ऐसे करीब 100 अधिकारी-कर्मचारियों के नाम है। मध्यप्रदेश में ऐसा कोई नगर निगम, नगर पालिका अथवा नगर पंचायत नहीं है जहां पर कोई ना कोई कर्मचारी प्रतिनियुक्ति पर ना हो। आश्चर्यजनक बात यह है कि प्रतिनियुक्ति पर आने वाले कर्मचारी, कई बड़े पदों के प्रभारी अधिकारी बनकर बैठे हुए हैं। इन्हीं के कारण डिपार्टमेंट का पूरा सिस्टम डिस्टर्ब हो गया है।
नगरिया निकाय में प्रतिनियुक्ति पर क्यों आते हैं कर्मचारी
मलाईदार पोस्ट मिलती है। अपने विभाग की तुलना में स्वतंत्रता ज्यादा रहती है।
निकाय स्वशासी संस्थाएं होती हैं। महापौर-अध्यक्ष के साथ कमिश्नर-सीएमओ से ही संपर्क करना होता है।
निकायों में राजनीतिक संपर्क बना रहता है। इसी दौरान बड़े नेताओं से भी संपर्क हो जाता है।
रहने के लिए क्वार्टर, पानी, सफाई जैसी सुविधाएं मुफ्त में मिलती है।
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