बहुत से ऐसे अपराध होते हैं जिसमे एक आरोपी व्यक्ति अपराध से बचने के लिए क्रॉस FIR दर्ज करवाते हैं लेकिन अगर कोई व्यक्ति द्वेषपूर्ण भावना (बदले की भावना) से किसी व्यक्ति को तंग करता है तब यह भारतीय दंड संहिता में एक कम गंभीर अपराध हो सकता है लेकिन अगर यही अपराध विशेष विधि से संरक्षण प्राप्त व्यक्ति पर किया जाता है तब यह अपराध संज्ञेय होगा।
अर्थात कोई अनुसूचित जाति वर्ग का व्यक्ति किसी सामान्य वर्ग के अधिकारी के भ्रष्टाचार की शिकायत संबंधित अधिकारी से करता है और वह भ्रष्ट अधिकारी उस शिकायत के बाद अनुसूचित जाति वर्ग के व्यक्ति को तंग करने के लिए झूठा वाद दायर करे या बदले की भावना से कोई दाण्डिक या अन्य कार्यवाहियों उस पर संस्थित करता है तब यह विशेष विधि के अंतर्गत एक अपराध होगा जानिए।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(viii) एवं 3(ix) की परिभाषा:-
1. कोई व्यक्ति जो अनुसूचित जाति, जनजाति का सदस्य नहीं है वह किसी अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य के विरुद्ध झूठा वाद, द्वेषपूर्ण वाद या तंग करने वाला कोई वाद या कोई दाण्डिक या अन्य कार्यवाही द्वेषपूर्ण भावना से संस्थित करेगा वह व्यक्ति अधिनियम की धारा 3 (viii) अर्थात धारा 3(त) के अंतर्गत अपराधी होगा।
2. कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को झूठी किसी अपराध करने की जानकारी देगा और लोक सेवक अपने पद का गलत प्रयोग करके अनुसूचित जाति, जनजाति के ऊपर अपनी विधिपूर्वक शक्ति का प्रयोग करता है जिसे ऐसे विशेष वर्ग के व्यक्ति को किसी भी प्रकार की क्षति होने की संभावना हो या उसकी परेशानी (व्याकुलता) बढ़ाएगा तब ऐसा लोक सेवक अधिनियम की धारा 3(ix) अर्थात धारा 3(थ) का अपराधी होगा।
सजा:- उपर्युक्त अपराध संज्ञेय एवं अजमानतीय होंगे इन अपराध की सुनवाई विशेष न्यायालय में की जाती है। इन अपराधों के लिए कम से कम छः माह एवं अधिक से अधिक पाँच वर्ष की सजा और जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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