कई बार ऐसे खेत, प्लॉट, मकान, दुकान, कुआं अथवा तालाब आदि पर दो ऐसे पक्षों द्वारा अधिकार जताया जाता है जिनके पास उस संपत्ति के स्वामित्व से संबंधित कोई पुख्ता दस्तावेज नहीं होता। संपत्ति के स्वामी की मृत्यु हो चुकी होती है। वह किसी दूसरे शहर में होता है या फिर सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज उसका पता बदल जाता है और उसे विवाद की सूचना नहीं मिल पाती।
ऐसी स्थिति में विवाद का निपटारा कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा नहीं किया जाता बल्कि सक्षम न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया जाता है लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं होता कि कार्यपालक मजिस्ट्रेट विवादित संपत्ति को लावारिस छोड़ देगा अथवा दोनों में से जो शक्तिशाली होगा वह कब्जा करके रख सकता है बल्कि ऐसी स्थिति में कार्यपालक मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 146 के तहत कार्रवाई करेगा।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 146 की परिभाषा (सरल शब्दों में):-
• अगर कार्यपालक मजिस्ट्रेट (SDM) द्वारा किसी भूमि या जलस्त्रोत संबंधित विवादित या अवैध कब्जा वाली संपत्ति निपटारा नहीं हो पा रहा है अर्थात पता नही चल पा रहा है कि वास्तव में वर्तमान में संपत्ति किस व्यक्ति की है, तब मजिस्ट्रेट ऐसी संपत्ति को तब तक के लिए कुर्क (जब्त) कर लेगा जब तक की सिविल न्यायालय द्वारा कोई आदेश जारी नहीं होगा कि वास्तविक संपत्ति पर अधिकार किसका है।
• कार्यपालक मजिस्ट्रेट ऐसी विवादित भूमि, जलस्त्रोत संबंधित जब्त की गई संपत्ति की देख-रेख के लिए एक रिसीवर अधिकारी नियुक्त कर सकता है, लेकिन यदि सिविल न्यायालय द्वारा भी संपत्ति की सुरक्षा के लिए रिसीवर अधिकारी की नियुक्ति हो जाती है तब कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा रिसीवर अधिकारी को कर्तव्य से मुक्त कर दिया जाएगा। "रिसीवर अधिकारी वह होता है जो न्यायालय द्वारा जब्त की गई किसी भी प्रकार की विवादित संपत्ति की देख-रेख करता है उसका संरक्षण या सुरक्षा करता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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