कलयुग में श्री राधा-कृष्ण के प्रेम विवाह की कथा, आज भी मंदिर में स्थापित हैं - shri radha krishna love marriage real story

Bhopal Samachar
बात जब श्रीकृष्ण की होती है तो चमत्कारों की कथाएं अपने आप प्रकाश में आ जाती हैं। मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले की पोहरी तहसील में अत्यंत ही लोकप्रिय मंदिर है। यह मंदिर राधा रानी के लिए बनाया गया था, परंतु भगवान श्री कृष्ण जयपुर से पोहरी तक चले आए। राधा रानी के संग ब्याह रचाया और फिर घर जमाई बनकर यहीं रह गए। इस कथा में कई चमत्कार हैं। ध्यान से पढ़िए, आपको आपके आसपास कन्हैया के होने का एहसास होगा।

कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के राधा रानी से प्रेम विवाह की कथा

यह कथा विक्रम संवत 1589 से शुरू होती है। पोहरी में किले का निर्माण कराया जा रहा था। खुदाई के दौरान राधा रानी की एक प्रतिमा मिली। पोहरी की राजा ने श्रद्धा पूर्वक किले के अंदर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया और राधा रानी की प्रतिमा को स्थापित कर दिया। शायद यह विश्व का इकलौता मंदिर रहा होगा जहां सिर्फ राधा रानी की स्वयंभू प्रतिमा स्थापित थी। इसीलिए आसपास के क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय हो गया। 

भगवान श्री कृष्ण की लीला का प्रारंभ

इस मंदिर से करीब 50 किलोमीटर दूर गल्थूनी गांव के जागीरदार जसवंत सिंह के मन में अपनी जागीर में नागरिकों की खुशहाली एवं समृद्धि के लिए भगवान श्री कृष्ण का मंदिर बनाने का विचार आया। प्रातः काल उन्होंने अपने आचार्य को इसके विषय में बताया और भगवान के मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया। शुभ मुहूर्त में गांव के पंचों को साथ लेकर राजस्थान के जयपुर शहर में भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा को लेने के लिए निकल पड़े। उन्होंने कई प्रतिमाओं को देखा परंतु सभी पंच एक राय नहीं हुए। इस विरोधाभास के बीच श्री कृष्ण की एक प्रतिमा को देखकर सभी मोहित हो गए।

रात के अंधेरे में श्रीकृष्ण की प्रतिमा ले गए, उधारी की चिट्ठी छोड़ गए 

जब जागीरदार ने मूर्तिकार थे उस प्रतिमा की दक्षिणा के विषय में पूछा तो उन्होंने 500 चंदौली बताया। जागीरदार और सभी पंचों के पास मिलाकर कुल 300 चंदौली मुद्राएं थीं लेकिन कोई भी इस प्रतिमा के अतिरिक्त किसी दूसरी प्रतिमा को साथ ले जाने के लिए तैयार नहीं था। काफी विचार विमर्श के बाद एक युक्ति सूझी। सभी लोग मूर्तिकार के यहां रात्रि विश्राम के लिए रुक गए। अर्धरात्रि के बाद जागीरदार और सभी पंच चुपचाप उठे, प्रभु श्री कृष्ण की प्रतिमा को साथ लिया, उसके स्थान पर 300 चंदौली मुद्राएं रखी और एक उधारी की चिट्ठी छोड़ गए। जिसमें लिखा था कि शेष बची हुई 200 मुद्राएं हम गांव पहुंचते ही चुका देंगे। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण जयपुर से गल्थूनी गांव तक आ गए। 

राधा रानी से विवाह के लिए रूठे श्री कृष्ण 

जागीरदार ने अपनी क्षमता के अनुसार यहां एक सुंदर मंदिर का निर्माण कराया और भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा को विधिपूर्वक स्थापित किया गया परंतु श्री कृष्ण यहां स्थापित होने के लिए नहीं आए थे। इसलिए रूठ गए। गांव के अविवाहित युवकों के विवाह में बाधाएं आने लगी। यह देखकर जागीरदार चिंतित हो गए। विचार करने लगे कि भगवान श्री कृष्ण के मंदिर के निर्माण में अवश्य कोई भूल हो गई है। तभी रात्रि में विचार आया कि भगवान श्री कृष्ण मंदिर में अकेले विराजमान है, उनके साथ राधारानी नहीं है। यदि श्री कृष्ण का विवाह हो जाएगा तो गांव के सभी बालकों का विवाह हो जाएगा।

श्री कृष्ण के लिए राधा रानी की तलाश 

इस विचार के साथ ही भगवान श्री कृष्ण के लिए राधा रानी की तलाश शुरू हो गई। निश्चित रूप से यह काफी मुश्किल लक्ष्य था। क्योंकि किसी भी मंदिर में अकेली राधा रानी विराजमान नहीं थी। काफी तलाश करने के बाद जागीरदार को पोहरी के किले की कथा का पता चला। उन्होंने पोहरी आकर पूरी बात बताई और श्री राधा रानी के साथ भगवान श्री कृष्ण का विवाह संबंध हो गया।

कलयुग में श्री कृष्ण का राधा रानी से प्रेम विवाह 

गल्थूनी गांव से बड़ी ही धूमधाम के साथ भगवान श्री कृष्ण की बारात का प्रस्थान हुआ और शुभ मुहूर्त में भगवान कृष्ण की बारात ने पोहरी के किले में प्रवेश किया। विवाह के लिए पोहरी के किले के अंदर स्थित राधा रानी के मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा को स्थापित किया गया। यहां पर 8 दिन तक भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी के विवाह का उत्सव मनाया जाता रहा। 

घर जमाई बन गए भगवान श्री कृष्ण, अपना मंदिर त्याग दिया 

विवाह संपन्न होने के बाद जैसे ही विदाई की बेला शुरू हुई। चल समारोह के सिंहासन पर बिठाने के लिए भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा को उठाने का प्रयास किया गया तो सभी प्रयास असफल होते चले गए। भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा जो बड़ी ही आसानी से जयपुर से गल्थूनी गांव तक और गल्थूनी गांव से पोहरी के किले तक आ गई थी। अचानक जड़ हो गई। जागीरदार समझ गए। भगवान श्री कृष्ण की सेवा करके वह अपने आप को कृतार्थ पा रहे थे। बारातियों को लेकर अपने गांव बिना श्रीकृष्ण के रवाना हो गए। तभी से पोहरी के किले के अंदर राधा रानी के साथ श्री कृष्ण की प्रतिमा विराजमान है।

गांव के बच्चे राधा जी को बुआ और भगवान कृष्ण को फूफा जी कहते हैं 

गांव के बच्चे आज भी मंदिर में स्थापित राधा रानी को बुआ जी और भगवान श्री कृष्ण को फूफा जी कहते हैं। गांव के लोग श्री जमाता की तरह भगवान श्री कृष्ण का आदर सत्कार करते हैं एवं सभी कार्यक्रमों में निमंत्रण देते हैं। वासुदेव कृष्ण, सारी दुनिया में भले ही भगवान के रूप में स्थापित हो परंतु यहां रिश्तेदार हैं।

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