जब कोई व्यक्ति संज्ञेय (गंभीर) अपराध के अंतर्गत पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है। तब पुलिस अधिकारी अन्वेषण करने से पूर्व ऐसे आरोपी व्यक्ति को चौबीस घंटों के भीतर किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करेगा। उससे पहले पुलिस अधिकारी आरोपी व्यक्ति से यह स्वीकृति लेगा की अपराध उसने किया है कि नहीं। आरोपी व्यक्ति पुलिस के दबाव में या धमकी के कारण अपराध को स्वीकार कर लेता है तब क्या वह अपराधी माना जाएगा, इसका जबाब हैं नहीं। पुलिस की स्वीकृति आरोपी व्यक्ति को अपराधी साबित नहीं कर सकती है, न ही पुलिस द्वारा ली गई किसी भी प्रकार की स्वीकृति कोई ठोस साक्ष्य होगी जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 164 की परिभाषा (सरल भाषा में):-
【न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोपी व्यक्ति की स्वीकृति एवं साक्षियों के कथन】-
1. किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट के पास पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति को बयान या स्वीकृति के लिए पेश करेगा जिस पर कोई अपराध का आरोप लगा गया हो। पुलिस अन्वेषण या जाँच करने से पहले आरोपी व्यक्ति को किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करेगा।
2. न्यायिक मजिस्ट्रेट आरोपी व्यक्ति को यह समझायेगा की वह अपनी स्वेच्छा से बयान दे सकता है। यहाँ वह किसी के दबाव में नहीं है। अगर उसने सच में अपराध किया है तो यह बताएगा कि उसकी स्वीकृति साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत होगी। अगर उसने किसी भी प्रकार का कोई अपराध नहीं किया हैं तो उसे किसी भी अपराध को स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं है वह पूर्ण रूप से स्वतंत्र है।
3. अगर स्वीकृति करने वाला व्यक्ति मजिस्ट्रेट से बोलता है कि उसके द्वारा पुलिस को दी गई स्वीकृति सही नहीं है। वह स्वीकृति पुलिस अधिकारी द्वारा डरा धमकाकर या लालच देकर ली गई थी, तब मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को छोड़ सकता है और दोबारा उस व्यक्ति को पुलिस अभिरक्षा में नहीं भेजेगा।
4. अगर कोई व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से किसी अपराध की स्वीकृति देता है तो मजिस्ट्रेट ऐसी स्वीकृति को अभिलिखित करेगा एवं मजिस्ट्रेट स्वयं एक ज्ञापन लिखेगा जिसमें मजिस्ट्रेट यह कहेगा कि -: मैंने स्वीकृति देने वाले व्यक्ति को सम्पूर्ण जानकारी दे दी है अगर वह किसी दबाव में अपराध की स्वीकृति दे रहा है तो वह ऐसी स्वीकृति को न दे एवं स्वेच्छा से अपराध को स्वीकार कर रहा है तो उसकी स्वीकृति साक्ष्य के रूप में ठोस सबूत हो सकती है आदि। इस ज्ञापन में मजिस्ट्रेट एवं स्वीकृति देने वाले के हस्ताक्षर होंगे।
5. अगर कोई व्यक्ति जो मानसिक रूप में निःशक्त या बीमार है तो उसके लिए विशेष प्रावधान किया जाएगा एवं मजिस्ट्रेट को यह भी अधिकारी होगा कि उसके कथनों की वीडियो रिकॉर्डिंग करवा सकता है।
6. अगर कोई गंभीर अपराध किसी अन्य मजिस्ट्रेट के अधिकारिता क्षेत्र में हो गया है तब गिरफ्तार व्यक्ति को चौबीस घंटों के अंदर किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर सकते हैं उस अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को आरोपी के 164 के अंतर्गत स्वीकृति लेने का पूर्ण विधिक अधिकार होगा। एवं उस मजिस्ट्रेट का कर्तव्य होगा कि आरोपी द्वारा की गई स्वीकृति को वह उस अधिकारिता रखने वाले न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा, न कि वह उस स्वीकृति को पुलिस अधिकारी को देगा।
नोट:- धारा 164 की उपधाराओं के अनुसार आरोपी के अपराध के बारे में मजिस्ट्रेट स्वीकृति लेगा एवं पीड़ित व्यक्ति या साक्षियों से सिर्फ बयान या कथन को दर्ज करवाएगा। मजिस्ट्रेट के समक्ष की गई स्वीकृति एवं दिया गया बयान एक ठोस साक्ष्य हो सकता है लेकिन पुलिस द्वारा ली गई स्वीकृति या बयान ठोस साक्ष्य तब होगा तब पुलिस के पास आरोपी के खिलाफ कोई ठोस तथ्य भी हो। अन्यथा स्वीकृति अवैध पुलिस की स्वीकृति अवैध एवं अमान्य हो सकती है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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