किसी भी पुलिस थाने में FIR- प्रथम सूचना प्रतिवेदन दर्ज हो जाने के बाद थाना प्रभारी दर्ज हुए आपराधिक प्रकरण की जांच करता है और जांच रिपोर्ट के साथ प्रकरण को अंतिम निराकरण के लिए सक्षम न्यायालय में प्रस्तुत करता है। आरोपी के खिलाफ साक्ष्य एकत्रित करना इन्वेस्टिगेशन ऑफीसर की जिम्मेदारी होती है। कई बार शिकायत सामने आती है कि पुलिस का इन्वेस्टिगेशन ऑफीसर सही प्रकार से जांच नहीं कर रहा है। सवाल यह है कि ऐसी स्थिति में क्या पीड़ित पक्ष अथवा आरोपी (जो जांच से असंतुष्ट है) न्यायालय की शरण में जा सकता है और क्या न्यायालय चालान पेश होने से पहले पुलिस को इन्वेस्टिगेशन के मामले में कोई आदेश दे सकता है। आइए जानते हैं:-
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की 156 की परिभाषा(सरल भाषा में):-
1. कोई भी पुलिस थाने का स्थानीय थाना प्रभारी संज्ञेय अपराध में स्थानीय अधिकारिता रखने वाले न्यायालय या मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना अन्वेषण कर सकता है।
2 ऐसे पुलिस अधिकारी जो किसी अपराध का विचारण के समय अन्वेषण कर रहा है उसके अन्वेषण कार्रवाई में किसी भी प्रकार का कोई प्रश्नगत नहीं किया जाएगा, अर्थात उसे किसी भी प्रकार से रोका नहीं जा सकता है।
3. लेकिन अगर कोई व्यक्ति जो आरोपी या पीड़ित हैं उसे पुलिस अधिकारी के अन्वेषण में लापरवाही लगती है, तब वह उस स्थानीय मजिस्ट्रेट या न्यायालय में परिवाद दायर कर सकता है जाँच करवाने के लिए। एवं न्यायालय ऐसे परिवाद (शिकायत) का संज्ञान ले सकता है, एवं अपने स्तर से किसी भी अधिकारी से विचारण के अपराध की जांच करवा सकता है या अन्वेषण कर रहे पुलिस अधिकारी को स्पष्ट, सत्य एवं जल्दी अन्वेषण करने के आदेश दे सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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