जब कोई पुलिस अधिकारी किसी अपराध का अन्वेषण करता है तब वह अपराधी की स्वीकृति के बाद साक्षियों के बयान भी लेता है, वह साक्षियों से अपेक्षा करता है कि अपराध से संबंधित जो भी साक्ष्य अथवा जानकारी उनके पास है, वह पुलिस अधिकारी को बताए एवं अपने बयान को सही सही प्रस्तुत करें। वैसे तो सभी को आमतौर पर पता ही होता है कि पुलिस अधिकारी दण्ड प्रक्रिया की धारा 161 के अंतर्गत साक्षियों के बयान लेती है लेकिन इन बयानों की सीमा कहाँ कहाँ तक हो सकती है पुलिस अधिकारी साक्षियों से किस प्रकार के प्रश्नों को ही पूछ सकता है जानते हैं आज के लेख में।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 161 की परिभाषा:-
कोई भी पुलिस अधिकारी जो संज्ञेय या असंज्ञेय (गंभीर या सामान्य) अपराध का इन्वेस्टिगेशन या अन्वेषण कर रहा है या उस इन्वेस्टिगेशन अधिकारी के अधीनस्थ कार्य कर रहा निम्न पंक्ति का पुलिस अधिकारी अर्थात सब इंस्पेक्टर वह किसी भी साक्षियों का मौखिक बयान ले सकता है।
पुलिस अधिकारी साक्षियों से ऐसे प्रश्न नहीं पूछेगा जिसमे उसको ही अपराध का दोषी बनाने की आशंका हो रही है। अर्थात पुलिस अधिकारी घटित अपराध के सम्बंध में जानकारी लेगा की अपने वहाँ क्या क्या देखा था, आरोपी ने मृतक पर किस औजार से वार किया था आदि, न कि साक्षी को ही आरोपी बनाने वाले प्रश्न पूछे जाएंगे।
- पुलिस अधिकारी केवल प्रकरण से संबंधित सवाल पूछ सकता है।
- पुलिस अधिकारी गवाह की पहचान सुनिश्चित करने के लिए सवाल पूछ सकता है।
- पुलिस अधिकारी किसी भी प्रकार का दबाव नहीं डाल सकता।
- जांच अधिकारी अपनी इन्वेस्टिगेशन को सही साबित करने के लिए गवाहों से बयान देने के लिए नहीं कह सकता
- गवाहों के बयान लेने से पहले जांच अधिकारी अपनी जांच के निष्कर्ष नहीं बता सकता।
पुलिस अधिकारी प्रत्येक साक्षियों के बयान को पृथक-पृथक लेगा एवं इनको अलग अलग ही अभिलिखित करेगा। पुलिस अधिकारी साक्षियों के बयान की वीडियो या ऑडियो भी रिकॉर्ड करवा सकता है। लेकिन महिलाओं पर होने वाले अपराध में कोई महिला गवाही के लिए आएगी तब महिला अधिकारी ही उनके बयान को लेगी। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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