भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 24 बताती है कि कोई भी पुलिस अधिकारी द्वारा ली गई स्वीकृति कब ठोस सबूत नहीं होगी जब व्यक्ति को उत्प्रेरणा दी गई हो या धमकी द्वारा ली गई हो या किसी भी प्रकार का लालच दिया गया हो या दिलवाया गया हो। ऐसे स्वीकृति या बयान कोई ठोस साक्ष्य नहीं होगा लेकिन अगर पुलिस अधिकारी के पास स्वीकृति के अलावा अपराध को साबित करने के कोई ठोस तथ्य है तब स्वीकृति या बयान कैसे भी लिया गया है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। आज हम बताते हैं कि पुलिस द्वारा उत्प्रेरणा द्वारा लिया गया बयान दण्ड प्रक्रिया संहिता की कौन सी धारा का उल्लंघन होगा।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 163 परिभाषा:-
1. कोई भी पुलिस अधिकारी किसी साक्षी, आरोपी या पीड़ित व्यक्ति से उत्प्रेरणा (कष्ट) देकर, धमकी देकर, लालच देकर, किसी भी प्रकार का वचन देकर या किसी अन्य व्यक्ति से दबाव दिलवाकर अपराध में संबंध में किसी भी प्रकार की न तो स्वीकृति लेगा न कि बयान लेगा।
2. अगर कोई व्यक्ति किसी अपराध के अन्वेषण के दौरान किसी अधिकारी को कोई बयान देता है तब पुलिस अधिकारी उसके कथन को सुनेगा। उसको अपनी बात करने से पुलिस अधिकारी नही रोक सकता है वह धारा 163 की उपधारा 2 के अधीन कथन देने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होगा।
• अर्थात पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को बयान देने से रोकता है या उत्प्रेरणा द्वारा अपराध की स्वीकृति लेता है तब ऐसा पुलिस अधिकारी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 163 का उल्लंघन करेगा जिसके लिए पुलिस अधिकारी को न्यायालय द्वारा विधि का पालन न करने के लिए दोषी ठहराया जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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