सोने के सिक्के को मोहर, तो चांदी और तांबे के सिक्के को क्या कहा जाता था - GK in Hindi

Bhopal Samachar
हम सभी जानते हैं कि प्राचीन काल में भारतवर्ष में सोने के सिक्कों का चलन हुआ करता था। सोने के सिक्कों को मोहर कहा जाता था। राजा जब खुश होते थे तो इनाम में मोहर दिया करते थे। उसी समय में चांदी और सोने के सिक्के भी प्रचलन में थे। सवाल यह है कि सोने के सिक्के को मोहर कहा जाता था चांदी के सिक्के और तांबे के सिक्के का नाम क्या था।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारतवर्ष में विभिन्न राजाओं द्वारा कई प्रकार की मुद्राओं का प्रचलन किया गया। एक राजा ने तो अपना नाम इतिहास में अमर करने के लिए चमड़े के सिक्के चलाए थे। ज्यादातर राजाओं ने सबसे मूल्यवान मुद्रा सोने की ही बनाई लेकिन उन्हें स्वर्ण मुद्रा कहा जाता था। सोने के सिक्के को 'मोहर' नाम शेरशाह सूरी ने भारत में अपने शासनकाल 1540-1545 के दौरान दिया था।

यह काफी महत्वपूर्ण जानकारी है कि शेरशाह सूरी ने ही चांदी और तांबे को मुद्रा के रूप में प्रचलित किया। चांदी के सिक्के का नाम रुपया और तांबे के सिक्के का नाम 'दाम' रखा गया था। रुपया शब्द का उद्गम संस्कृत के शब्द रुप् या रुप्याह् में निहित है, जिसका अर्थ चाँदी होता है और रूप्यकम् का अर्थ चाँदी का सिक्का है। शेरशाह सूरी से पहले इल्तुतमिश के समय पर चांदी के सिक्के मुद्रा के रुप में प्रचलित किए गए थे तब उसका नाम टंका था और ताबे के सिक्के को चीतल कहकर पुकारा जाता था। 

शेरशाह सूरी द्वारा दिया गया नाम 'रुपया' आज भी प्रचलन में है और इसीलिए भारतीय मुद्रा में चांदी का तार लगा होता है। कितनी मजेदार बात है। ज्यादातर लोग 'दाम' का अर्थ मूल्य समझते हैं। जबकि दाम का अर्थ होता है, तांबे का सिक्का। बाद में तांबे के सिक्के का नाम बदलकर पैसा कर दिया गया। यह आजादी के बाद तक प्रचलन में रहा। भारत में शेरशाह सूरी द्वारा प्रचलित किए गए रुपया (चांदी का सिक्का) का वजन 178 ग्रेन (11.534 ग्राम) के लगभग था। आज भी दीपावली के अवसर पर 11 ग्राम के चांदी के सिक्के को शुभ और मंगलकारी माना जाता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article

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