देखा तो अपन सबने हैं, लेकिन कभी ध्यान नहीं दिया। रसोई घर में जब तवे पर गेहूं की रोटी गरम की जाती है तो उसमें हवा भर जाती है और फूल जाती है, लेकिन उसी रसोई घर में उसी तवे पर ज्वार या मक्का की रोटी बनाई जाए तो वह गेहूं की रोटी की तरह फूलती नहीं है। सरल सा सवाल यह है कि, ऐसा क्यों होता है। गेहूं की रोटी के अंदर हवा कहां से भर जाती है।
दरअसल भारत के रसोई घर में दुनिया का सबसे श्रेष्ठ विज्ञान और इंजीनियरिंग मिलती है। पूरी साइंस की मदद से मिशन मंगल की सफलता के बाद पूरी दुनिया भारत के रसोई घर में मौजूद विज्ञान और इंजीनियरिंग का लोहा मान चुकी है। गेहूं की रोटी के मामले में भी बिल्कुल ऐसा ही है। यह विज्ञान और इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना है। यदि रोटी बेलने की तकनीक बदल दी जाए तो उसमें हवा नहीं भर पाएगी। आपको याद आ गया होगा कि सभी रोटी नहीं फूलतीं, केवल एक्सपीरियंस हाथों से बेली गई चपाती ही फूल पाती है।
चपाती के फूलने का कारण कार्बन डाइऑक्साइड है। जब हम आटे में पानी मिलाकर उसे गूंथते हैं, तब गेहूं में शामिल प्रोटीन से एक लचीली परत बन जाती है। इसे ग्लूटेन कहते हैं और इसकी खासियत यह होती है कि वो अपने अंदर कार्बन डाईऑक्साइड सोख लेती है। यही कारण है कि गूंथने के बाद गेहूं का आटा फूल जाता है। जब हम चपाती बेलकर तवे पर गर्म करते हैं तो नीचे से कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलने की कोशिश करती है। इसी जद्दोजहद में वह चपाती को 2 परतों में विभाजित कर देती है। इसी प्रक्रिया में वो रोटी के ऊपरी भाग को फुला देती है। जो भाग तवे के साथ चिपका होता है, उस तरफ एक पपड़ी-सी बन जाती है।
बाजरा, मक्का की रोटी में ग्लूटेन की कमी होने के कारण कार्बन डाइऑक्साइड इतनी मात्रा में नहीं बन पाती और यही कारण है कि ज्वार, बाजरा अथवा मक्का की रोटी, गेहूं की चपाती की तरह फूलती नहीं है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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