मांसाहारी लोग जानवरों का शिकार इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें मांस भक्षण करना होता है परंतु शेर का मांस नहीं खाया जाता। सवाल यह है कि फिर शेरों के शिकार की परंपरा क्यों बनाई गई। क्या सिर्फ अपनी वीरता प्रदर्शित करने के लिए शेरों का शिकार किया जाता था या फिर इसके पीछे कोई लॉजिक भी है।
यदि अपन बिना किसी स्टडी के अपनी मेमोरी के बेस पर बात करेंगे तो दावे के साथ कहा जा सकता है कि शेरों का शिकार केवल वीरता को प्रदर्शित करने के लिए ही किया जाता था परंतु इस प्रकार के उदाहरण अधिकतम 500 साल पूर्व तक ही मिलते हैं। रिसर्च और स्टडी का सब्जेक्ट तो यह है कि हजारों साल पहले लोकप्रिय एवं संवेदनशील राजा महाराजा शेरों का शिकार क्यों करते थे। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि लगभग 10,000 साल पहले पृथ्वी पर शेरों की जनसंख्या इंसानों के लगभग बराबर थी। अपनी भूख मिटाने के लिए शेर इंसानों और उनके पालतू जानवरों (गाय-बैल इत्यादि) का शिकार कर लेते थे।
यह तो अपन जानते ही हैं कि पालतू पशुओं को 'धन' माना जाता है। अतः प्रजा की जान और माल की रक्षा के लिए राजा-महाराजा इंसानों की बस्ती के आसपास घूमने वाले हिंसक जानवरों एवं शेरों का शिकार किया करते थे। वह नियमित रूप से शिकार पर जाते थे। ताकि जनता की रक्षा सुनिश्चित की जा सके। नियमित रूप से शिकार करने के कारण शेरों की संख्या कम होती चली गई। ऐसी स्थिति में शिकार की परंपरा बंद कर दी जानी चाहिए थी, परंतु ऐसा नहीं किया गया और कायरों की तरह सुरक्षित मचान पर बैठकर शेर का शिकार करके लोग खुद को वीर प्रमाणित करने लगे। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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