ग्वालियर। मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में पुलिस ने हत्या के एक मामले में निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ फर्जी केस बना दिया। फर्जी सबूत इकट्ठे किए गए और इस तरीके से किए गए कि जिला न्यायालय ने उन्हें सही मानते हुए आरोपी को फांसी की सजा सुना दी। हाई कोर्ट में मामले का खुलासा हुआ। कोर्ट ने मामले से संबंधित थाने के इंस्पेक्टर, इन्वेस्टिगेशन ऑफीसर, गवाह और फेरारी के खिलाफ FIR दर्ज करने के आदेश दिए हैं।
पुलिस को घटनास्थल से कोई साक्ष्य नहीं मिले थे: वकील की दलील
विशेष सत्र न्यायालय विदिशा ने 7 मार्च 2020 को परिस्थिति जन्य साक्ष्य के आधार पर आरोपित रवी उर्फ टोली मालवीय को हत्या में फांसी व दुष्कर्म के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। आरोपित 6 नवंबर 2015 से जेल में बंद है। नियमानुसार सजा-ए-मौत कंफर्म होने के लिए हाईकोर्ट भेजी गई थी। रवी ने भी फांसी की सजा को हाई कोर्ट में चुनौती दी। रवी की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता पदम सिंह ने तर्क दिया कि पुलिस ने बनावटी साक्ष्य बनाए हैं। जब शव मिला था, तब पुलिस अधिकारियों ने 500 मीटर तक तलाश की थी। उस वक्त कुछ नहीं मिला।
डीएनए टेस्ट के लिए आरोपी का खून लाश के कपड़ों पर डाला: वकील का खुलासा
29 अक्टूबर 2015 को कुछ सिक्के व कपड़े सार्वजनिक रास्ते पर पड़े मिले बताया है। ये कपड़े पहले मिले हैं और आरोपित की गिरफ्तारी बाद में हो रही है। डीएनए टेस्ट में मृतिका के रिपोर्ट आनी चाहिए, ऐसा नहीं हुआ, सिर्फ आरोपित के सैंपल मिलाए गए। डीएनए टेस्ट के लिए 2 मिलीग्राम ब्लड लेना चाहिए, लेकिन पुलिस ने 6 मिलीग्राम ब्लड निकाला। पुलिस ने जो ज्यााद खून निकाला था, वह बाद में कपड़ों पर डाला है। गवाहों ने भी बनावटी गवाही दी। परिस्थिति जन्य आधार पर सजा सुनाई गई है।
इन आधारों पर किया है दोषमुक्त
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ ने मामले की पूरी सुनवाई के बाद पाया कि साक्ष्य एकत्रित करने में पुलिस निष्पक्ष नहीं रही है। बनावटी साक्ष्य तैयार किए गए हैं। 24 व 25 अक्टूबर 2015 को शव मिला था। पुलिस ने घटना स्थल का नक्शा बनाया था, जिसमें 500 मीटर तक कुछ नहीं मिला था। पुलिस बाद में मृतिका का पजामा मिला था, जिस पर मृतिका का डीएनए भी होना चाहिए था, लेकिन आरोपित का ही मिला।
- पुलिस ने पजामा 29 अक्टूबर 2015 को बरामद दिखाया। पुलिस का कहना था कि आरोपित उन्हें मौके पर लेकर गया था। जबकि आरोपित की गिरफ्तारी 6 नवंबर 2015 को हुई थी।
- गवाह हाेस्टाइल हो चुका था, लेकिन अभियोजन ने उसे हाेस्टाइल घोषित नहीं किया। अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया।
क्या है मामला
- विदिशा जिले के सिविल लाइन थाना अंतर्गत एक साढ़े चार साल की मासूम के साथ दुष्कर्म कर हत्या की गई। शव कुएं से बरामद हुआ था। मासूम को भोपाल स्टेशन से अपहरण कर विदिसा लाया गया। मासूम की मां ट्रेन में सामान बेचने का काम करती थी। वह अपनी बेटी को प्लेटफार्म नंबर 6 पर छोड़कर चली गई थी। जब शव बरामद हुआ था, तब मासूम की पहचान नहीं हो सकी थी। पुलिस ने अखबारों में मासूम के फोटो छपवाये। मासूम की मां को रुक्मिणी ने फोटो दिखाया कि यह तुम्हारी बेटी तो नहीं है। फोटो में उसे नहीं पहचाना, लेकिन जब थान पर कपड़े दिखाए तो उसने पहचान लिया। पुलिस ने इस मामले की जांच की।
-पूरनपुरा दुर्गा नगर विदिशा निवासी रवी उर्फ टोली मालवीय ट्रेन में सामान बेचने का काम करता था। वह पीड़िता की मां का परिचित भी था। पुलिस ने 6 नवंबर 2015 को गिरफ्तार कर लिया। जांच के बाद कोर्ट में चालान पेश किया। परिस्थिति जन साक्ष्य के आधार पर सजा सुनाई गई।
बनावटी साक्ष्य व झूठी गवाही देने के बदले होगी कार्रवाई
- हाई कोर्ट ने विदिसा के सिविल लाइन थाने तत्कालीन टीआई संजीव चौकसे व जांच अधिकारी एसएनएस सोलंकी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। बनावटी साक्ष्य बनाने के बदले में केस चलाया जाएगा।
- गवाह कमलेश आदिवासी,बलबीर सिंह, पूजा किरार, संजय उर्फ संजू परिहार, कोक सिंह, रुक्मणि सहित पीड़िता की मांग के खिलाफ झूठी गवाह के बदले में केस चालाया जाएगा।
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