उद्देश्य अपराध का नहीं और कोई अपराध हो जाएं तो दण्ड विधान के साधारण अपवाद में यह क्षमा योग्य होगा। अर्थात बिना आपराधिक उद्देश्य से किया गया कोई अपराध, अपराध नहीं होता है। आज के लेख में हम एक सवाल का उत्तर खोजने की कोशिश करते हैं कि कोई व्यक्ति स्वंय की इच्छा से किसी व्यक्ति को ऐसी स्वीकृति दे सकता है कि वह उसे गंभीर चोट पहुचाए या उसकी मृत्यु कर दे अगर हाँ, तो यह स्वीकृति वैध होगी या अवैध जानते हैं
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 87 की परिभाषा:-
दो वयस्क व्यक्ति द्वारा बिना आपराधिक उद्देश्य से आपस में ऐसे कार्य करने की स्वीकृति की जाए जिसमे एक- दूसरे को कोई गंभीर क्षति न हो, एवं न ही उस कार्य में मृत्यु करने का कोई आशय हो। ऐसी स्वीकृति के बाद अगर उनमें से किसी व्यक्ति के कारण कोई गम्भीर अपराध सावधानीपूर्वक कार्य करते हुए हो जाए, तब उस व्यक्ति को धारा-87 के अंतर्गत बचाव मिल सकता है।
नोट:- प्रायः कुश्ती, मुक्केबाजी, बॉक्सिंग, मल्लयुद्ध आदि जैसे खेलों तथा जोखिमों भरे व्यायामों आदि के दौरान शरीरिक क्षति के लिए धारा 87 का बचाव लिया जाता है।
उधारानुसार वाद:-हरपाल सिंह बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य-
उपर्युक्त मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि ज्यादातर यौन-अपराधों के मामलों में पीड़िता की स्वीकृति आरोपी के लिए एक बचाव सिद्ध होता हैं, एवं इसी स्वीकृति के आधार पर न्यायालय से आरोपी को धारा-87 के अंर्तगत दोषमुक्त कर दिया जाता है लेकिन कोई स्त्री जो अठारह वर्ष से कम आयु की है तब उसकी सहमति को वैधानिक मान्यता नहीं दी जाती।, आरोपी को अपराध (दोष) से मुक्त होने का उसे उसी धारा के अंतर्गत दोषी माना जाएगा जो उसने अपराध किया है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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