MP NEWS- कर्मचारियों के प्रमोशन में क्या दिक्कत है जब 27% OBC आरक्षण दे सकते है

Bhopal Samachar
भोपाल
। मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने करीब 5 साल पहले शासकीय कर्मचारियों एवं अधिकारियों के प्रमोशन रोक दिए थे। हाल ही में शिवराज सरकार ने 27% ओबीसी आरक्षण का ऐलान किया है। कर्मचारी एवं अधिकारियों का सवाल है कि यदि कोर्ट के स्थगन के बावजूद 27% ओबीसी आरक्षण दिया जा सकता है तो फिर कर्मचारियों के प्रमोशन में क्या दिक्कत है।

प्रमोशन में आरक्षण का विवाद तो केवल रिजर्वेशन रोस्टर तक सीमित है

कर्मचारी संगठन 27% ओबीसी आरक्षण के फैसले की तर्ज पर और पदोन्नति नियम 2002 को आधार बनाते हुए कर्मचारी प्रमोशन देने की मांग कर रहे हैं। दरअसल, हाईकोर्ट के 30 अप्रैल 2016 के जिस फैसले को आधार बनाते हुए पदोन्नतियां रोकी गईं, वो सिर्फ पदोन्नति नियम 2002 के रिजर्वेशन रोस्टर तक सीमित है। बाकी पदोन्नति अभी भी यथावत हैं। 

हाईकोर्ट के फैसले की शब्दश: व्याख्या नहीं की 

प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता रविनंदन सिंह का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले की शब्दश: व्याख्या नहीं होने के चलते पदोन्नतियां रोकी गईं। उस फैसले के पैरा 27 में स्पष्ट है कि पदोन्नति नियम में रिजर्वेशन, बैकलॉग रिक्तियों को कैरीफॉवर्ड करना एवं रोस्टर के ऑपरेशन के प्रावधान संविधान के विरुद्ध हैं। बाकी नियम के जरिए पदोन्नतियां की जा सकती हैं। 

कर्मचारियों के प्रमोशन के लिए महाधिवक्ता से परामर्श मांगे सरकार

सरकार यदि इस मामले में भी महाधिवक्ता के अभिमत का रास्ता निकाले तो पांच साल से रुकी पदोन्नतियां दोबारा शुरू हो सकती हैं। बता दें कि प्रमोशन पर रोक के चलते बीते पांच साल में एक लाख से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्नत हुए रिटायर हो गए। पदोन्नति शुरू नहीं हुई तो हर साल 7 से 8 हजार कर्मचारी बिना प्रमोशन रिटायर होते रहेंगे।

मैरिट कम सीनियॉरिटी के आधार पर दे सकते हैं प्रमोशन

हाल ही में सरकार ने महाधिवक्ता से अभिमत लेकर ओबीसी वर्ग का आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी किया है। उसने कहा है कि हाईकोर्ट ने तीन विभागों से संबंधित छह याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए 27% आरक्षण पर अंतरिम रोक लगाई है। ऐसे में ये रोक सिर्फ तीन विभागों की छह याचिकाओं से संबंधित है, न कि सभी विभागों की। इसलिए इन्हें छोड़ बाकी ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण दिया जा सकता है। सरकार को यह फैसला लेने में इसलिए भी देरी हुई, क्योंकि 19 महीने पहले बनाए गए कानून के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं थी। इस बारे में जब महाधिवक्ता से अभिमत लिया गया तो उन्होंने बीच का रास्ता निकाला। कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता भी ऐसे ही निकल सकता है, क्योंकि हाईकोर्ट ने सिर्फ रिजर्वेशन रोस्टर पर रोक लगाई है, न कि पदोन्नति नियमों पर। इस लिहाज से भर्ती के आधार पर सभी वर्गों के कर्मचारियों को मैरिट कम सीनियॉरिटी के आधार पर पर प्रमोशन दिया जा सकता है।

संपूर्ण पदोन्नत नियम नहीं हुए अल्ट्रावायरस

मप्र लोक सेवा (पदोन्नति नियम) 2002 अभी भी अस्तित्व में है। 30 अप्रैल 2016 को तत्कालीन चीफ जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय यादव की खंडपीठ ने पूरे पदोन्नति नियम को अल्ट्रावायरस घोषित नहीं किया था। कोर्ट ने सिर्फ इस नियम के रिजर्वेशन प्रावधानों पर रोक लगाई थी, जिस पर मप्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सिविल अपील क्रमांक 1632/2016 लगाई है। इस पर 14 सितंबर को सुनवाई होनी है।

पदोन्नति रुकने से प्रशासनिक दक्षता प्रभावित हुई

प्रदेश में पांच सालों से कर्मचारियों की पदोन्नति रुकी हुई है, इससे प्रशासनिक दक्षता प्रभावित होती है। वर्तमान में जो पदोन्नति नियम है, उनके हिसाब से कर्मचारियों के प्रमोशन का रास्ता निकाला जा सकता है।
- केएस शर्मा, पूर्व मुख्य सचिव, मध्यप्रदेश

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